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चतुर्थ अध्याय वैमानिक देव
अतराल
अपत्यमा
1-2
कुछ अधिक
"पल्य | 2
587
2,000
3-4
१व 11
| 7,000
5-A
पीछे
10,000
10
स्वर्गकी
14
14,000
14
13 व 15 | 17 व 19 21 व 23 25 व 27
16
16,000
7-8
उत्कृष्ट 9-10
आयु में 11-12 एक
समय
अधिक 15-16/
16
18 .
18,000
18
13-14
20
34041
| 20,000
20
करने पर, 22
48व 55
| 22,000
|
22
23,000
नव
कल्पातीत आगे
23-31 | आगे के ग्रैवेयक स्वर्ग की
जघन्य अनुविश आयु | 32
31,000
23-31
32,000
32
33,000
33
# पंच होती है अनुत्तर
होती है।
| सभी लौकान्तिक देवों की आयु आठ सागर की होती है। # सर्वार्थसिद्धि के देवों की जघन्य व उत्कृष्ट आय तैतीस सागर की ही होती है। 1. घातायुष्क सम्यग्दृष्टि देवों की अपेक्षा पहले से बारहवें स्वर्ग में उत्कृष्ट आयु अपनी-अपनी उपर्युक्त वर्णित उत्कृष्ट आयु से
अंतर्मुहूर्त कम आधा सागर अधिक होती है। 2. घातायुष्क मिथ्यादृष्टि देवों की अपेक्षा पल्य के असंख्यातवें भाग
से अधिक होती है।
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