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________________ चतुर्थ अध्याय वैमानिक देव अवधिज्ञान गमन क्षेत्र स्वर्ग विमान GIËSI पर की सहायता से मध्यम पीत उत्कृष्ट पीत जघन्य पद्म मध्यम 5-6 पद्म 17-8 मध्यम पद्म | उत्कृष्ट पद्म, |1-2 जल कुछ अधिक 31/2राजू | 11/2 राजू (नीचे-1 (11/2+2) ___ नरक) वायु | 4 राजू (नीचे- 5 राजू | (3+1) 2 नरक) ज 51/2 राजू . 51/2 राजू | . (31/2+2) |ल |6 राजू (नीचे- 6 राजू ||8 राजू एवं | (4+2) 3 नरक) |(ऊपर9-10 | वा 71/2 राजू 61/2 राजू || 16 स्वर्ग तक, *(41/2+3) (नीचे 8 राजू | 4 नरक) 7 राजू ॥ |11-12 | (5+3) + आ |91/2 राजू 51/2 राजू स्व व पर | (51/2+4) (नीचे|15-16|| 10 राजू 5 नरक) 6 राजू - 6 राजू 106+4) कल्पातीत कुछ अधिक 11 राजू ग्रैवेयक | (6+5) (नीचे-6 नरक)। अपने विमानों को | श | कुछ अधिक 13 राजू छोड़कर अन्यत्र क तक) जघन्य शुक्ल उत्कृष्ट पद्म, जघन्य शुक्ल मध्यम 113-14 मिलाकर शुक्ल मध्यम शुक्ल मध्यम शुक्ल परम अनुदिश गमन का अभाव शुक्ल | कुछ कम 14 राजू | है। परम शुक्ल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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