________________
प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[७१ पुद्गल के भेद और उनका स्वरूप-ग्रन्थ में रूपी पुद्गल-द्रव्य के जिन चार भेदों का कथन किया गया है उनके नाम ये हैं : १. स्कन्ध (समुदाय), २. देश (स्कन्ध का कल्पित-भाग), ३. प्रदेश (स्कन्ध से मिला हुआ समूहात्मक द्रव्य का सबसे छोटा अविभाज्यांश) तथा ४. परमाणु ( स्कन्ध से पृथक सबसे छोटा अविभाज्य अंश )। रूपीद्रव्य का वह भाग जो कम-से-कम दो भागों में विभक्त किया जा सके 'स्कन्ध' (समूह-समुदाय) कहलाता है । दृष्टिगोचर होने वाले सभी द्रव्य स्कन्ध-रूप ही हैं क्योंकि उन्हें दो या अधिक भागों में विभक्त किया जा सकता है। रूपी-द्रव्य का वह भाग जो दो भागों में विभक्त न किया जा सके ऐसा सबसे छोटा अंश (जो समूहात्मक द्रव्य से पृथक् हो) 'परमाणु' कहलाता है। जब परमाणु किसी समूहात्मक द्रव्य से सम्बद्ध हो जाता है तो उसे 'प्रदेश' कहते हैं। अर्थात स्कन्ध के सबसे छोटे अंश को प्रदेश कहते हैं और उस सबसे छोटे अविभाज्य अंश के स्कन्ध से पृथक् हो जाने पर उसे ही परमाणु कहते हैं। बड़े स्कन्ध के कल्पित भागविशेष को जो सबसे छोटा अंश न हो. 'देश' कहते हैं। इस तरह 'देश' और 'प्रदेश' इन दो भेदों के स्कन्धरूप होने से पुद्गलद्रव्य के दो ही मुख्य भेद हैं : स्कन्ध और परमाणु । तत्त्वार्थसूत्रकार ने पुद्गल-द्रव्य के अणु और स्कन्ध के भेद से दो ही भेद किए हैं । २
उवभोज्जमिदिएहिं य इंदिय काया मणो य कम्माणि । जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पुग्गलं जाणे ॥ १. देखिए-उ० आ० टी०, पृ० १६३२. पंचास्तिकाय (गाया ७४-७५) में भी पुद्गल के इसी प्रकार चार भेद किए हैं । परन्तु वहाँ स्कन्ध के आधे भाग को 'देश' और स्कन्ध के चतुर्थांश को 'प्रदेश' कहा है" खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणू । इदि ते चदुव्वियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ॥ खधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसोति ।
अद्धद्धं च पदेशो परमाणू चेव अविभागी॥ २. अणवः स्कन्धाश्च ।
-त० सू० ५.२५.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org