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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
और न गन्ध । शब्द का स्पर्श भी ऐसा नहीं होता जिसे हम छूकर बता सकें कि इसमें कठोर या मृदु स्पर्श है । परन्तु कर्ण - इन्द्रिय से शब्द का सम्पर्क होने पर उसका ज्ञान अवश्य होता है । हम शब्द को तालु आदि के प्रयत्न से उत्पन्न करते हैं और उसे रिकार्ड भी कर लेते हैं जिससे ज्ञात होता है कि उसका कोई आकार एवं स्पर्श भी अवश्य होना चाहिए । जब शब्द में आकार और स्पर्श है तो रूपादि अन्य गुण भी अवश्य होने चाहिए जिनका हमें प्रत्यक्ष-ज्ञान नहीं होता है । शब्द की तरह 'अन्धकार' भी प्रकाश का अभाव मात्र नहीं है अपितु वह भी रूपादि से युक्त होने के कारण पुद्गल की ही अवस्था विशेष ( पर्याय ) है | यदि 'अन्धकार' मात्र प्रकाश का अभाव होता तो उसका प्रत्यक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि अभाव का कभी प्रत्यक्षात्मक अनुभव नहीं होता है । यद्यपि प्रकाश के आने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है और प्रकाश के चले जाने पर अन्धकार छा जाता है । परन्तु इससे उलटा भी कहा जा सकता है कि अन्धकार के आने पर प्रकाश चला जाता है और अन्धकार के चले जाने पर प्रकाश आ जाता है । अतः अन्धकार अभावमात्र न होकर प्रकाश की तरह सत्तात्मक पुद्गल द्रव्य है । इसी तरह 'छाया', 'आतप', 'प्रभा' और 'उद्योत' आदि 'को भी पुद्गल द्रव्य की पर्याय जानना चाहिए । विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है । " इस तरह शब्द, अन्धकार आदि में रूपादि गुणों का सद्भाव होने से ये सभी पुद्गल द्रव्यरूप ही हैं । इसके अतिरिक्त पृथिवी, जल, तेज (अग्नि) और वायु ये चारों भौतिक द्रव्य वैशेषिकों की तरह स्वतन्त्र द्रव्य नहीं हैं अपितु ये सभी पुद्गल की ही विभिन्न अवस्था - विशेष ( पर्याय ) हैं । इसके अतिरिक्त राग-द्वेष के कारण मानव के द्वारा किए गए अच्छे और बुरे कर्म भी पुद्गलरूप ही हैं । इसका आगे वर्णन किया जाएगा। इस तरह आधुनिक विज्ञान के मेटर और एनर्जी सभी पुद्गलरूप ही हैं
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१. देखिए - मोक्षशास्त्र ( ५. २३ - २४ ) - पं० फूलचन्द्र, पृ० २२६-२३६. २. पंचास्तिकाय ( गाथा ८२ ) में पुद्गल के समस्त विषय का उल्लेख करते हुए स्पष्ट लिखा है
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