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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार इसका तात्पर्य है कि शब्दादि सभी पुद्गल हैं। शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप ये सभी पुद्गल ही हैं यह बात सिद्ध करने के लिए ही पुद्गल के लक्षण में इन्हें गिनाया गया है; अन्यथा वर्णादि के कहने मात्र से पुद्गल का लक्षण हो सकता था। जैसा कि तत्त्वार्थसत्रकार ने किया है। यहाँ एक बात विचारणीय है कि पुद्गल के लक्षण में वर्णादि के उल्लेख के साथ संस्थान (आकार) को क्यों छोड़ दिया गया है ? जबकि रूपादि के भेदों में संस्थान को भी गिनाया गया है। तत्त्वार्थसूत्रकार ने भी पुदगल के लक्षण में संस्थान का सन्निवेश नहीं किया है, जबकि पुद्गल की विभिन्न अवस्थाओं ( पर्यायों ) का उल्लेख करते समय शब्दादि के साथ संस्थान का भी तत्त्वार्थसूत्रकार ने सन्निवेश किया है ।२ इससे प्रतीत होता है कि पुद्गल के लक्षण में संस्थान भी गतार्थ है। क्योंकि जब किसी पुदगल में रूपादि चार गुणों का सदभाव होगा तो उसका कोई न कोई आकार भी अवश्य होगा। अतः ग्रन्थ में पुदगल के स्वभाव (परिणाम) का वर्णन करते हुए उसे स्पष्ट रूप से रूपादि पाँच गुणों से युक्त बतलाया है।
शब्दादि में पुद्गल त्व की सिद्धि-वैशेषिकदर्शन में 'शब्द' को आकाश का गुण माना है। जबकि यहाँ पर शब्द को पुद्गलद्रव्य की अवस्था विशेष (पर्याय) माना गया है । हम श्रवणेन्द्रिय से शब्द का ज्ञान करते हैं परन्तु उसमें न तो कोई रूप है, न रस १. स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ।
-त० सू० ५. २३. . २. शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च ।
-त० सू० ५. २४. ३. वण्णओ गंधओ चेव रसओ फासओ तहा । संठाणओ य विन्नेओ परिणामो तेसि पंचहा ।।।
-उ० ३६.१५. ४. शब्दगुणकमाकाशम् ।
-तर्कसंग्रह, पृ० ६.
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