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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
स्पर्शवाली वस्तु हो, वायु है' ठीक नहीं है क्योंकि वैशेषिकों ने वायु में स्पर्श को स्वीकार करके भी उसे रूप - रसादि से रहित माना है। अनुभव में आता है कि जब वायु किसी दीवाल आदि से अवरुद्ध हो जाती है तो उसका कोई न कोई ठोस आकार भी अवश्य होना चाहिए अन्यथा वायु को दीवाल आदि से रुकना नहीं चाहिए | वायु में जब कोई ठोस आकार है तो उसमें कोई न कोई रूप भी अवश्य होना चाहिए; भले ही वह हमें प्रत्यक्ष न हो । इस तर्क के द्वारा यह नहीं कहा जा सकता है कि चेतन आत्मा में भी रूपादि होना चाहिए क्योंकि वह भी कोई वस्तु है । ऐसी ठोस वस्तु नहीं है जो किसी दीवाल आदि से रुके । वायु की ही तरह जलादि में भी रूपादि पाँचों गुणों का सद्भाव है क्योंकि पृथिवी आदि सभी द्रव्य जब रूपी - पुद्गल के विकार ( पर्याय) हैं तो फिर उनमें रूपादि पाँचों गुण क्यों नहीं होंगे ? अतः जहाँ रूपादि में से कोई भी गुण प्रकट होगा वहां रसादि अन्य गुण भी किसी न किसी अंश में अवश्य होंगे। इस तरह जलादि में पाँचों गुणों का सद्भाव न मानने वाले वैशेषिकों की मान्यता का खण्डन हो जाता है ।
आत्मा
पुद्गल का लक्षण - ग्रन्थ में पुद्गल का लक्षण करते हुए शब्द, अन्धकार, उद्योत (प्रकाश), प्रभा ( कान्ति), छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श इन १० नामों को गिनाया है । २
१. रूपरहित स्पर्शवान्वायुः ।
- तर्क संग्रह, पृ० ७.
वैशेषिकदर्शन की मान्यता है कि पृथिवी में रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये चारों गुण पाए जाते हैं परन्तु जल में गन्ध का, तेज में गन्ध और रस का, वायु में रूप - रस और गन्ध का अभाव है । वेदान्तदर्शन के अनुसार ये सब ब्रह्म के ही विकार हैं। इनका उत्पत्तिक्रम है- आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथिवी । २. सद्दन्धयार - उज्जोओ पभा छाया तवो इ वा ।
वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ।।
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– उ० २८. १२.
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