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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन एक ही वस्तु किसी को सुगन्धित लग सकती है और किसी को दुर्गन्धित ।
४. स्पर्श-स्पर्श से तात्पर्य है-हस्तादि के द्वारा छने से होने वाला अनुभव। यह मुख्यरूप से आठ प्रकार का बतलाया गया है-कठोर ( कर्कश ), मुलायम ( मृदु), वजनदार ( गुरु ), हल्का ( लघ ), ठंडा ( शीत ), गरम ( उष्ण ), चिकना (स्निग्ध) और रूखा ( रुक्ष )।
५. संस्थान--संस्थान से तात्पर्य है--आकृति या आकार ( रचना )। इसका बोध हमें चक्ष इन्द्रिय एवं स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा होता है। इसके प्रमुख पाँच प्रकार हैं-गोलाकार (परिमंडल-चूड़ी की तरह गोल ), वृत्ताकार ( गेंद की तरह वर्तुलाकार ), त्रिकोणाकार ( व्यस्र ), चतुष्कोण (चतुरस्र-चार कोनों वाला ) और लम्बाकार ( आयत )। ___ रूपादि के इन पांचों भेदों में परस्पर सम्बन्ध भी है। जिस द्रव्य में रूप के पांच भेदों में से कोई एक रूप होगा उसमें रसादि के अवान्तर भेदों में से भी प्रत्येक का कोई न कोई भेद अवश्य होगा। कोई भी रूपी-द्रव्य ऐसा नहीं है जिसमें कोई न कोई रस, स्पर्श, गन्ध और आकार न हो। अर्थात जिसमें रूपादि में से कोई गुण प्रकटरूप से होगा उसमें अन्य रसादि सभी गुण भी किसी न किसी मात्रा में अवश्य रहेंगे क्योंकि जिसमें रूप हो उसमें रसादि गुण न हों, यह संभव नहीं है। अतः इन रूपादि गुणों के परस्पर सम्मिश्रण की स्थिति-विशेषके भेद से ग्रन्थ में इनके ४८२ भेद ( भङ्ग ) गिनाए हैं। जैसे' -रूप के पाँचों भेदों का रसादि के बीस भेदों के साथ संयोग करने पर । ५४ २० ) १०० भेद रूप-सम्बन्धी होते हैं। पाँच रस के भेदों का अन्य रूपादि के बीस १. वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गंधओ।
रसओ फासओ चेव भइए संठाणओवि य ।।
जे आययसंठाणे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओवि य ।।
-उ० ३६. २२-४६.
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