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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[ ६५ रूपादि गुणों के भेद-प्रभेद और उनका परस्पर सम्बन्ध-पुद्गल द्रव्य में पाए जानेवाले रूपादि गुणों के प्रमुख पांच भेद हैं। इन पांचों भेदों के अन्य अवान्तर पच्चीस भेद निम्नोक्त हैं :१
१. रूप (वर्ण)-रूप या वर्ण से तात्पर्य है -द्रव्य में पाया जाने वाला 'रंग' जिसका बोध हमें अपनी आँखों से होता है। इसके मुख्य पाँच प्रकार इस प्रकार गिनाए हैं-काला (कृष्ण), नीला (नील), लाल (लोहित), पीला (पीत) और सफेद (शुक्ल) । इन प्रमुख ५ रंगों के अतिरिक्त जो अन्य रंग हमें दिखलाई पड़ते हैं वे इन्हीं के सम्मिश्रण से बनते हैं। अतः उनका पृथक् कथन न करके इन्हीं में अन्तर्भाव कर लिया गया है ।
२. रस-रस से तात्पर्य है-'स्वाद' जिसका बोध हमें अपनी जिह्वा इन्द्रिय से होता है। इसके भी प्रमुख पाँच प्रकार गिनाए हैं- चरपरा (तिक्त), कडुआ (कटुक), कसैला, खट्टा (अम्ल) और मीठा (मधुर)।
३: गन्ध-गन्ध से तात्पर्य है-नासिका इद्रिय द्वारा अनुभव की जानेवाली 'सुगन्ध या दुर्गन्ध'। इसके प्रमुख दो प्रकार हैंसुगन्ध ( जिससे आसक्ति बढे । जैसे-चन्दनादि से निकलनेवाली गन्ध ) और दुर्गन्ध (जिससे घृणा पैदा हो। जैसे-लशुन आदि से निकलनेवाली गन्ध)। अमुक वस्तुएँ सुगन्धवाली हैं और अमुक वस्तुएँ दुर्गन्धवाली हैं ऐसा विभाजन संभव नहीं है क्योंकि इस विषय में अलग-अलग जीव की अलग-अलग अनुभूति है।
१. वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । .. किण्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुक्किला तहा। .
संठाणओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा य तंसा चउरंसमायया ।।
-उ० ३६..१६-२१. . न्यायदर्शन में रूपादि के भेद-प्रभेद भिन्न प्रकार से गिनाए हैं।
-देखिए-तकंसंग्रह, प्रत्यक्ष-परिच्छेद, पृ० ११-१२.
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