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________________ ६४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन रिक्त जो अन्य अवान्तर-भेद किए गए हैं वे सब इनके ही अवान्तररूप हैं । अचेतन-द्रव्य के अवान्तर भेद निम्नोक्त हैं : १ अचेतन-अजीवद्रव्य रूपी ( पुद्गल) अरूपी स्कन्ध देश प्रदेश परमाणु । धर्म अधर्म आकाश . आकाश काल । । । । । । । स्कन्ध देश प्रदेश स्कन्ध देश प्रदेश स्कन्ध देश प्रदेश अब क्रमशः इन द्रव्यों का विचार किया जाएगा। (क) रूपी अचेतन-द्रव्य (पुद्गल) : __ रूपी अचेतन-द्रव्य से तात्पर्य है-जिसमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और आकार पाया जावे। जो सूना जा सके, खाया जा सके, तोड़ा जा सके, देखा जा सके वह सब रूपी अचेतन-द्रव्य है। इसका एक विशेष नाम दिया गया है-'पुद्गल'। छः द्रव्यों में 'पुद्गल' ही एक मात्र ऐसा द्रव्य है जिसमें रूपादि गुण पाए जाते हैं। १. वही। धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पएसे य आहिए । अहम्मो तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । अवासमए चेव अरूवी दसहा भवे ॥ -उ० ३६.५-६. खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुओ य बोद्धव्वा रूविणो य चउविहा ॥ -उ० ३६.१०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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