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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[.६३ में चेतन जीव-द्रव्य के अतिरिक्त अचेतन-द्रव्य-सम्बन्धी पांच स्वतन्त्र द्रव्यों को भी मिला लिया गया है। इस तरह छः द्रव्यों के नाम ये हैं-१. चेतन-जीव, २. रूपी-अचेतन-पुद्गल, ३. गति-हेतु-धर्म, ४. स्थिति-हेतु-अधर्म, ५. समय-काल और ६. प्रदेश (अवकाश)-आकाश ।
यद्यपि इन छः द्रव्यों में से जीव, पुद्गल और काल द्रव्य के अन्य अवान्तर अनेक स्वतन्त्र भेद हैं परन्तु उन्हें सामान्यगुण की अपेक्षा से एक में अन्तर्भाव करके छः ही स्वतन्त्र द्रव्यों को गिनाया गया है। इन छः द्रव्यों के अतिरिक्त सम्पूर्ण लोक तथा अलोक में कोई अन्य स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है। इन छः मूल द्रव्यों से ही इस सृष्टि का संचालन होता है। इनके अतिरिक्त ईश्वर आदि अन्य कोई संचालक तत्त्व नहीं है।
अल्प-विषय होने से पहले अचेतन-द्रव्य का वर्णन किया जाएगा।
अचेतन द्रव्य : __ अचेतन-द्रव्य से तात्पर्य है जिसमें जानने और देखने की शक्ति नहीं है । यह मुख्यरूप से दो प्रकार का है' : १ जिसमें रूपादि का सद्भाव पाया जाता है वह 'रूपी' तथा २ जिस में रूपादि का अभाव रहता है वह 'अरूपी' । जिसका कोई ठोस आकार-प्रकार आदि संभव है उसे रूपी या मूर्तिक कहते हैं तथा जिसका कोई ठोस आकारप्रकार आदि संभव नहीं है उसे अरूपी या अमूर्तिक कहते हैं। इन दोनों प्रकारों में रूपी-द्रव्य का मुख्यरूप से एक ही भेद है जिसका नाम है-पुद्गल । अरूपी-अचेतन-द्रव्य के प्रमुख चार भेद हैं जिनके नाम ये हैं-धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इस तरह कुल मिलाकर अचेतन-द्रव्य के प्रमुख पांच भेद हैं। इसके अति
१. रूविणो चेवरूवी य अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता रूविणौ य चउव्विहा ॥
-उ० ३६.४. तथा देखिए-उ०३६.२४६.
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