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________________ ६२ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन प्रकृति (अचेतन) की तरह एकरूप नहीं हैं। यद्यपि चेतन-तत्त्व सांख्य के पुरुष की तरह अनेक हैं परन्तु उनके स्वरूप में भिन्नता है। इसी तरह अचेतन-तत्त्व भी अनेक हैं। वे सांख्य की प्रकृति की तरह एकरूप नहीं हैं अपितु मुख्य रूप से पांच स्वतन्त्र तत्त्वों वाले हैं। उन पांच अचेतन तत्त्वों के नाम हैं-गतिद्रव्य (धर्मद्रव्य), स्थितिद्रव्य (अधर्मद्रव्य), समयद्रव्य (काल), प्रदेशद्रव्य (आकाश) और रूपीद्रव्य (पुद्गल)। ऐसा नहीं है कि किसी एक अचेतनतत्त्व से इन पांचों का आविर्भाव हुआ हो। अपितु ये पांचों ही द्रव्य अपने आप में पूर्ण स्वतन्त्र हैं। चेतन और अचेतन गुण के सदभाव और असद्भाव के आधार पर ही लोक के समस्त द्रव्यों को दो भागों में विभाजित किया गया है। अतः मुख्यरूप से चेतन और अचेतन ऐसे दो मूल-तत्त्व मानने के कारण सांख्य की तरह द्वैतवाद नहीं कहा जा सकता है। दो से अधिक मूल-तत्त्वों की सत्ता स्वीकार करने से बहुत्ववाद ही कहा जा सकता है। जिस तरह चेतन गुण के सद्भाव और असद्भाव के आधार से द्रव्यों के दो भेद संभव हैं उसी प्रकार रूपादिगुण के सद्भाव और असद्भाव से, बहुप्रदेशत्व (अस्तिकाय) और एक-प्रदेशत्व (एक-प्रदेशवर्तीअनस्तिकाय) के आधार से, लोक-प्रमाणत्व और लोकालोकप्रमाणत्व के आधार से, एकत्वसंख्या-विशिष्टत्व और बहुत्वसंख्या-विशिष्टत्व आदि के आधार से और भी अन्य अनेक द्वैतात्मक भेद संभव हैं। इनका आगे यथा-प्रसंग वर्णन किया जाएगा। परन्तु इस प्रकार का द्वैतात्मक-विभाजन ग्रन्थ में अभिप्रेत नहीं है क्योंकि इससे चेतन-तत्त्व की स्वतन्त्र सत्ता में बहुत बड़ा आघात पहुंचता है और जबकि अचेतन-तत्त्व से चेतनतत्त्व की स्वतन्त्र सत्ता सिद्ध करना ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। अतः इस प्रकार का द्वैतात्मक-विभाजन संभव होने पर भी लोकालोक में पाए जाने वाले सभी द्रव्यों को मुख्यरूप से छः स्वतन्त्र भागों में विभक्त किया गया है। इन छः द्रव्यों के स्वतन्त्र भेदों १. धम्मो अधम्मो आगासं कालो पुग्गल-जन्तवो । एस लोगो ति पन्नत्तो जिणेहिं बरदंसिहि ॥ -उ० २८.७. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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