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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[ ६१ इनमें मुख्यतया नारकी जीवों का निवास है। उनके क्रमशः नाम ये हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा तथा महातमःप्रभा।' इनके साथ जो 'प्रभा' (कान्ति) शब्द जुड़ा हुआ है वह उनके रंग को अभिव्यक्त करता है ।
इस तरह इस लोक-रचना के तीन प्रमुख भागों में से ऊर्ध्वलोक के सबसे ऊपरी-भाग में मुक्त आत्माओं का निवास है। उसके नीचे 'सिद्धशिला' नामकी पृथिवी है तथा उसके नीचे देवताओं के आकाशगामी विमान हैं । उसके नीचे मध्यलोक में मुख्य रूप से मानवजगत् है । इसके बाद सबसे नीचे अधोलोक में नरकसम्बन्धी सात पृथिवियां हैं जिनमें मुख्यरूप से नारकी जीव रहते हैं। इस लोक की सीमा के चारों ओर अनन्त-सीमारहित अलोकाकाश है। यह लोक-रचना इतनी विशाल एवं जटिल है कि आज का विज्ञान इसके बहुत ही सूक्ष्म-अंश को जान सका है।
जट-द्रव्य सम्पूर्ण लोक में सामान्य तौर से दो ही तत्त्व पाए जाते हैं : चेतन और अचेतन । ग्रन्थ में इनके क्रमश: नाम हैं-जीव-द्रव्य .. और अजीव-द्रव्य ।२ इन दो द्रव्यों के संयोग और वियोग से ही
इस नाना प्रकार की सृष्टि का आविर्भाव एवं तिरोभाव होता है। यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है कि ये दोनों द्रव्य जिन्हें तत्त्व शब्द से भी कहा गया है, सांख्य-दर्शन के पुरुष (चेतन) और . १: नेरइया सत्तविहा पुढवीसू सत्तसू भवे ।
रयणाभसक्कराभा बालुयाभा य आहिया ॥ पंकामा धूमाभा तमा तमतमा तहा।
-उ० ३६. १५६-१५७. विशेष-लोक में कुल आठ पृथिवियां हैं जिनमें से सात अधोलोक में हैं और एक सिद्धशिला नाम की ऊर्ध्वलोक में है । मध्यलोक में जो पृथिवी है वह अधोलोक की रत्नप्रभा नाम की प्रथम पृथिवी की ऊपरी
सतह है। २. देखिए-पृ० ५५, पा० दि० १.
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