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६०] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन गई हैं।' जैसे-जम्बूद्वीप में एक हैमवत, एक हरि, एक रम्यक, एक हैरण्यवत, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु-ये ६ क्षेत्र हैं। इसी तरह धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में हैमवतादि प्रत्येक के २-२ क्षेत्र होने से दोनों द्वीपों के १२-१२ क्षेत्र हैं। इस तरह कुल मिलाकर अकर्मभूमि के ३० क्षेत्र माने गए हैं।
(ग) अन्तरद्वीप-कर्मभूमि और अकर्मभूमि के प्रदेश के अतिरिक्त जो समुद्र के मध्यवर्ती द्वीप बच जाते हैं उन्हें 'अन्तरद्वीप' कहते हैं। इसके २८ क्षेत्रों में भी मनुष्यों का निवास माना गया है।
इस तरह इस मध्यलोक के इतना विशाल होने पर भी तीनों लोकों के क्षेत्रफल में इसका क्षेत्रफल शून्य के बराबर है । अधोलोक :
यह मध्यलोक से नीचे का प्रदेश है। इसमें क्रमशः नीचे-नीचे सात पृथिवियां हैं जो क्रमशः सात नरकों के नाम से प्रसिद्ध हैं।
१. वही। २. जम्बूद्वीप के चारों ओर फैले हुए लवणसमुद्र में हिमवान् पर्वतसम्बन्धी
२८ अन्तरद्वीप हैं। ये अन्तरद्वीप सात चतुष्कों में विद्यमान हैं। इनके क्रमश: नाम ये हैं : प्रथम चतुष्क–एकोरुक, आभाषिक, लाङ गूलिक और वैषाणिक । द्वितीय चतुष्क-हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण और शष्कुलीकर्ण । तृतीय चतुष्क-आदर्शमुख, मेषमुख, हयमुख और गजमुख । चतुर्थ चतुष्क-अश्वमुख, हस्तिमुख, सिंहमुख और व्याघमुख । पंचम चतुष्क-अश्वकर्ण, सिंहकर्ण, गजकर्ण और कर्णप्रावरण । षष्ठ चतुष्क-उल्कामुख, विद्युन्मुख, जिह्वामुख और मेघमुख । सप्तम चतुष्क-घनदन्त, गूढदन्त, श्रेष्ठदन्त और शुद्धदन्त ।
___ इसी प्रकार से शिखरणीपर्वत सम्बन्धी भी २८ अन्तरद्वीप हैं । इस तरह कुल मिलाकर ५६ अन्तरद्वीप होते हैं। परन्तु दोनों को अभिन्न मानकर ग्रन्थ में अन्तरद्वीपों के २८ अवान्तरद्वीप गिनाए हैं । -देखिए-३६.१६६. ( आत्माराम-टीका, पृ० १७५६-१७६० ; घासीलाल-टीका, भाग-४ पृ० ६०५-६०७)
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