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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन की अवचूरि आदि ।' इन टीकाओं में अधिकांश अप्रकाशित हैं । वर्तमान में अंग्रेजी, हिन्दी और गुजराती अनुवाद आदि के साथ कुछ टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं। ग्रन्थ की लोकप्रियता और महत्ता के कारण वर्तमान में इसके विविध-संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और आगे भी प्रकाशित होते रहेंगे। जाल शान्टियर
१. जिनरत्नकोश-ग्रन्थविभाग, पृ० ४२.४६ में इसकी विस्तृत सूची है।
तथा देखिए-जैन भारती, वर्ष ७, अंक ३३, पृ० ५६५-६८. २. (क) अंग्रेजी प्रस्तावना और टिप्पणी के साथ जालं शान्टियर का
संशोधित मूल संस्करण, सन् १९२२; (ख) याकोबी का अंग्रेजी अनुवाद-से० बु० ई०, भाग-४५, आक्सफोर्ड, १८६५; (ग) लक्ष्मीवल्लभ की अर्थदीपिका-टीका के साथ गुजराती भाषानुवाद, आगमसंग्रह, कलकत्ता, सन् १९३४-३७; (घ) जयकीति-टीका के साथ हीरालाल हंसराज, जामनगर, सन् १९०६; (ङ) भद्रबाहु की नियुक्ति और शान्तिसूरि की शिष्यहिता-टीका के साथ, देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९१६-१७; (च) भावविजयगणि की सूत्रवृत्ति (विवृति) सहित, विनयभक्ति सुन्दरचरण ग्रन्थमाला, वेणप, वि० सं० १९९७; (छ) कमलसंयम की टीका के साथ, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, सन् १९२७; (ज) नेमिचन्द्र की सुखबोधा वृत्तिसहित, आत्मवल्लभग्रन्थावली, बलाद, अहमदाबाद, सन् १९३७; (झ) जिनदासगणि महत्तर की चूणि मात्र श्वेताम्बर संस्था, इन्दौर प्रकाशन, सन् १९३३; (अ) घासीलाल की प्रियदशिनी संस्कृत-टीका एवं हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९५६-६१; (ट) लक्ष्मीवल्लभटीका एवं गुजराती अनुवाद के साथ, मुद्रक-श्रीशचन्द्र भट्टाचार्य, कलकत्ता-७१; (ठ) भोगीलाल सांडेसरा (उ० १-१८) के गुजराती अनुवाद आदि के साथ, गुजरात विद्यासमा, अहमदाबाद, १६५२; (ड) रतनलाल डोशी के हिन्दी अनुवाद आदि के साथ, श्री अ० भा० साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ, सैलाना (म० प्र०), वी० सं० २४८६; (ढ) आत्माराम के हिन्दी अनुवाद आदि के साथ, जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, सन् १९३६-४२;
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