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________________ ४६ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन इसकी तुलना की जाती है ।" इस तरह उत्तराध्ययन सूत्र न केवल अंग बाह्य-ग्रन्थों से अपितु समवायांग आदि अंगग्रन्थों से भी प्राचीन और महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है। उत्तराध्ययन के ३६ वें अध्ययन के अन्तिम पद्य की नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने इसका महत्त्व प्रकट करते हुए इसे जिन-प्रणीत तथा अनन्त गूढ शब्दार्थों से युक्त बतलाया है । २ निर्मुक्तिकार के इस कथन से उत्तराध्ययन के महत्त्व और प्राचीनता दोनों का बोध होता है । original contents more like the old Buddhist works, the Dhammapada and the Sutta-Nipāta. - उ० शार, भूमिका, पृ० ४०. तथा देखिए - हि० इ० लि०, पृ० ४६७-४७०; उ० आ० टी०, भूमिका, पृ० २२ - २५; जै० सा० बृ० इ०, भाग-२, पृ० १४७, १५२, १५६, १५७, १५६, १६३, १६५, १६७; समी, कथानक संक्रमण, प्रत्येकबुद्ध तथा तुलनात्मक अध्ययन प्रकरण, पृ० २५५-३७०, ४३६-४५५. १. उत्तराध्ययन २२. ४२-४६ विनय ( पहला ) सभिक्षु (पन्द्रहवां) उत्तराध्ययन २६ वाँ अध्ययन १७. ३.६०० — देखिए- जै० सा० बृ० ३०, भाग-२, पृ. १८१. दशवैकालिक उत्तराध्ययन २. ७-१० ३२. १८ विनय-समाधि १. ४.१८ ( नौवां ) ८. १.८ उत्तराध्ययन के पच्चीसवें अध्ययन में तथा सूत्रकृताङ्ग, प्रथम भाग के नौवें और बारहवें अध्य भिक्षु अध्य (दसवां ) यन में ब्राह्मण और जैन साधु को समान बतलाया गया है । Jain Education International भगवती २. देखिए - पृ० ३६, पा० टि० १. उ० For Personal & Private Use Only सूत्रकृताङ्ग ३. ३. १६ www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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