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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
समझाया गया है । जैसे-इन्द्र-नमि-संवाद में प्रव्रज्या के समय उत्पन्न होनेवाले अन्तर्द्वन्द्व का समाधान, हरिकेशी और ब्राह्मणों के संवाद में यज्ञ की आध्यात्मिक व्याख्या, मृगापुत्र और उसके माता-पिता के साथ हुए संवाद में साधु के आचार का प्रतिपादन। इसी प्रकार के अन्य कई संवादस्थल हैं जो बहुत ही समयोपयोगी और प्रभावोत्पादक हैं। जैसे-अनाथी मुनि और राजा श्रेणिक के बीच हुआ अनाथ-विषयक संवाद, भ्रगुपुरोहित और उसके पुत्रद्वय के बीच हुआ आत्मा के अस्तित्व-विषयक संवाद, भ्रगुपुरोहित और उसकी पत्नी के बीच हुआ दीक्षा-विषयक संवाद, इषुकार राजा और उसकी पत्नी कमलावती के बीच हुआ राजा के कर्तव्यविषयक संवाद, केशि और गौतम के बीच हुआ
. आध्यात्मिक संवाद । इन सभी तथ्यों के कारण विन्टरनित्स, · कानजी भाई पटेल आदि उत्तराध्ययन को श्रमण धार्मिक-काव्य स्वीकार करते हैं।' इसके अतिरिक्त याकोबी, शान्टियर, विन्टरनित्स आदि प्रसिद्ध विद्वानों ने इसकी तुलना धम्मपद, सुत्तनिपात, जातक,
1. Above all, the first Mūla-sútra, the Uttarājjhayaņa or
Uttaradhyayana-sūtra, as a religious poem, is one of the most valuable portions of the canon. The work, consisting of 36 sections, is a compilation of various texts, which belong to various periods. The oldest nucleus consists of valuable poems-series of gnomic aphorisms, parables and similes, dialogues and ballads —which belong to the ascetic poetry of ancient India, and also have their parallels in Buddhist literature in
part.
-हि० इ० लि०, पृ० ४६६. तथा देखिए-श्रमण, मई-जून १९६४, पृ० ४८.
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