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________________ ४२ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन रात्रि और दिन का अतिक्रमण होने पर वृक्ष का पत्ता जिस प्रकार पीला पड़कर नीचे गिर जाता है उसी प्रकार मनुष्यों का जीवन भी ( परिवर्तनशील - नश्वर ) है । अतः हे गौतम! क्षणभर का भी प्रमाद मत कर ।' यहाँ उपदेश भी है और सरल दृष्टान्त के द्वारा विषय को स्पष्ट भी किया गया है। इससे पाठक के हृदय पर अमिट छाप बन जाती है । इसी प्रकार के अन्य उपमा और दृष्टान्त अलंकारों का प्रयोग प्रकृत ग्रन्थ में बहुतायत से हुआ है। २. प्रतीकात्मक रूपक - धर्म की आध्यात्मिक व्याख्या में प्रतीकात्मक रूपकों का प्रयोग किया गया है । जैसे- इन्द्र-नमि संवाद में दीक्षाविषयक, केशि- गौतम संवाद में धर्मभेदविषयक. हरिकेशीय अध्ययन में यज्ञविषयक आदि । इसी प्रकार महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन में अनाथी मुनि अनाथ शब्द की व्याख्या में वक्रोक्ति का प्रयोग करते हैं । २०. ३, २०-२१, ४२, ४४, ४७-४८, ५०, ५८, ६०. २२. २५. २८. ३०. ३४. ७, १०, ३०, ४१, ४४-४७, ५१. १७-१६, २१, २७, ४२-४३. २२. ५-६. २१. ७, १४, १७, १६, २३-२४. १८. २३. Jain Education International २७. १२, ५६. ६, १०-१३, १८, २०, २४, ३४, ३७, ४७, ५०, ६०, ६३, ७३, ७६.८६, ८६, ६६. ४-१६. ३६. ६०-६१. नोट – इनमें से कुछ दृष्टान्त सामान्य हैं और कुछ प्रकारान्तर से भी आए हैं । ८, १३-१४, १६. २६. ३२. १. दुम पत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाणजीवियं समयं गोयम मा पमायए ।। For Personal & Private Use Only - उ० १०. १. www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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