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प्रास्ताविक : जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र [४१ दृष्टि से इसमें साहित्यिक गुण भी मौजूद हैं । इसे केवल नीरस और शुष्क साहित्य नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि ग्रन्थ में बहुत्र पुनरु. क्तियाँ हैं और सैद्धान्तिक अध्ययनों में नीरसता भी है फिर भी अन्य आगम-ग्रन्थों की तुलना में इसकी भाषा-शैली साहित्यिक, सरल, नैसर्गिक, उपदेशात्मक, दृष्टान्त-अलंकारबहुल और सुभाषितात्मक है। इसमें कोई सन्देह नहीं है यदि उत्तराध्ययन में से सैद्धान्तिक (वर्णनात्मक) प्रकरणों को पृथक् कर दिया जाय तो यह विशुद्ध धार्मिक काव्य-ग्रन्थ हो सकता है। उपदेशात्मकता और पूनरुक्तियों के वर्तमान रहने पर भी इसका साहित्यिक महत्त्व घटता नहीं है क्योंकि उपमा, दृष्टान्त आदि अलंकारों के साथ आख्यानों और संवादों के हृदयस्पर्शी प्रयोग से इसमें प्रभावशालिता आ गई है। जैसे:
१. उपमा और दृष्टान्त अलंकार'–विषय को सुबोध बनाने के लिए प्रचलित दष्टान्तों का प्रयोग बहत किया गया है। जैसे
१. उत्तराध्ययन में प्रयुक्त उपमा और दृष्टान्त अलंकारों की सूची : अध्ययन • गाथा-संख्या
अध्ययन गाथा-संख्या संख्या
संख्या १. ४. ५, १२, ३७, ३६, ४५. २. ३, १०, १७, २४. - ३. ५.१२.१४.
४. ३, ५-६, ८. ५. ४.१०. १४-१६, २७. ६. १६. ७. १-६, ११, १४-१५, २३, २४. ८. ५-७, ६, १८. ६. ४८. ५३, ६२.
१०. १-२, २८, ३३. ११. १५-३१.
१२. १२, २६-२७. . १३. २२, ३०-३१.
१४. १, १८, २६-३०,
३३-३६, ४१-४८,
१७. २०-२१. १८. १३, १५, ३६, ४७-४८, ५२. १६. ३, १२, १४, १८-२४,
३४, ३६-४३, ४८-४६, ५१, ५४, ५६-५८, ६४-६८, ७०, ७८-८४, ८७.८८, ६३, ६७.
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