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३८ ] __ उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन और ३. पश्चाद्भावी। यद्यपि अध्ययन शब्द का अर्थ पढ़ना होता है परन्तु यहाँ पर अध्ययन शब्द परिच्छेद (प्रकरण या अध्याय) के अर्थ में प्रयुक्त है। नियुक्तिकार और चर्णिकार ने इसका कुछ विशेष अर्थ भी किया है। परन्तु तात्पर्य परिच्छेद से ही है क्योंकि ग्रन्थ में प्रत्येक परिच्छेद के लिए 'अध्ययन' शब्द का प्रयोग हुआ है । सूत्र शब्द का सामान्य अर्थ है-जिसमें शब्द तो कम हों और अर्थ विपुल हो । जैसे-तत्त्वार्थसूत्र, पातञ्जल-योगसूत्र, ब्रह्मसूत्र आदि। उत्तराध्ययन में इस प्रकार की सूत्ररूपता नहीं है अपितु इसके विपरीत शब्दों का विस्तार ही अधिक हआ है। यद्यपि चरणविधि आदि कुछ अध्ययनों के कुछ स्थल ऐसे भी हैं जहाँ पर शब्द कम और अर्थ अधिक है। प्रायः अन्यत्र विषय का विस्तार ही अधिक है। यद्यपि आत्मारामजी ने उत्तराध्ययन की भूमिका में कुछ नियुक्ति की गाथाएँ उद्धृत की हैं तथा सूत्र शब्द की कई प्रकार से व्युत्पत्ति करके उत्तराध्ययन को 'सूत्र-ग्रन्थ' सिद्ध किया है । परन्तु सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त सूत्र शब्द का लक्षण यहाँ घटित नहीं होता है। इसका प्राकृत रूप 'सुत्त' है और यह वैदिक सूक्तों (मन्त्रों) की ही तरह 'गाथा' के अर्थ का सूचक है। 'उत्तराध्ययन-सूत्र' शब्द का सामान्य अर्थ यही है। 'उत्तर' शब्द के अर्थ में 'मूलसूत्र' की तरह विद्वानों में कुछ मतभेद है। इसका कारण है -उत्तराध्ययन की रचना के विषय में विभिन्न संकेत । अतः यहाँ 'उत्तर' शब्द का अर्थ विचारणीय है ।
१. अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उबचियाणं ।
अणु वचओ व णवाणं तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। अहिगम्मति व अत्था अणेण अहियं व णयणमिच्छति । अहियं व साहु गच्छइ तम्हा अज्झणमिच्छति ।। --उ० नि०, गाथा ६-७.
तथा देखिए-उ० बृहद्वृत्ति, पृ० ६-७; उ० चूणि, पृ० ७. २. उ० आ० टी०, भूमिका, पृ० १३-२१.
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