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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन पिता-जिस प्रयोजन से लोग तप करते हैं वह सब कुछ (प्रचुर धन, स्त्रियाँ आदि) जब तुम्हें यहीं प्राप्त है तो फिर क्यों दीक्षा लेना चाहते हो ?
पुत्र-पिता जी ! तपरूपी धर्मधुरा को धारण करने वाले को धनादि से क्या प्रयोजन है ? हम तो गुणसमूह को धारण करने के लिए दीक्षा लेना चाहते हैं।
पिता-हे पुत्रो! जिस प्रकार अविद्यमान भी अग्नि अरणि से, घी दूध से, तेल तिल से उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार अविद्यमान जीव भी शरीर से उत्पन्न हो जाता है और शरीर के नष्ट होने पर नष्ट हो जाता है।
पुत्र-जीव अमूर्त स्वभाव वाला होने से मूर्त इन्द्रियों के द्वारा दिखलाई नहीं देता है। अमूर्त होने से वह नित्य भी है। वह न तो उत्पन्न होता है और न नष्ट ही होता है। इसका सम्यक ज्ञान. न होने से हम लोगों ने अब तक घर में रहकर पापकर्म किए । अतः अब देर करना उचित नहीं है।
पिता-यह लोक किससे पीड़ित है, किससे घिरा हुआ है और अमोघा कौन है ? यह जानने के लिए मैं उत्सूक हैं।
पुत्र-यह लोक मृत्यु से पीड़ित है,. बुढ़ापे से घिरा हुआ है और रात्रि को अमोघा कहा गया है। धर्म करने वाले की सभी रात्रियाँ सफल हैं और अधर्म करने वाले की असफल ।
पिता-पहले हम सब गृहस्थ-धर्म का पालन करें, बाद में दीक्षा लेंगे।
पत्र- जिसकी मृत्यु से मित्रता हो, जो मौत से बच सकता हो या जिसे यह विश्वास हो कि वह नहीं मरेगा वही कल के बारे में सोचे । हम दोनों तो आज ही दीक्षा लेंगे। ____ इस तरह पुरोहित के दोनों पुत्र जब अपने निश्चय से विचलित न हुए तो उसने भी पुत्रहीन की दयनीय स्थिति का विचार करके दीक्षा लेने का निश्चय किया और अपनी पत्नी से बोला- पुरोहित-हे वासिष्ठी ! अब मेरा भिक्षाचर्या का समय आ गया है क्योंकि शाखाविहीन वृक्ष की तरह पुत्रविहीन का घर में रहना निरर्थक है।
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