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परिशिष्ट १ : कथा-संवाद
[ ४६१ इस तरह इस परिसंवाद में अनाथ शब्द की बहुत ही रोचक व सटीक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इससे निम्नोक्त बातों पर प्रकाश पड़ता है :
१. धर्माचरण से युक्त व्यक्ति सनाथ है और धर्महीन अनाथ है।
२. धनादि से कोई सनाथ नहीं होता है। ३. बाह्यलिङ्ग की अपेक्षा अभ्यन्तर-शुद्धि की प्रधानता। ४. विनीत व्यक्ति का स्वरूप । ५. स्वल्प भी अपराध के लिए क्षमा-प्रार्थना ।
इषुकारीय आख्यान :
देवलोक के एक ही विमान में रहने वाले छः जीव अवशिष्ट पुण्य कर्मों का उपभोग करने के लिए इषकार नगर में उत्पन्न हुए । वे छः जीव इस प्रकार थे : १. पुरोहित, २. पुरोहित की पत्नी यशा, ३-४. पुरोहित के दो पुत्र, ५. राजा विशालकीर्ति (इषुकार)
और ६. राजा की पत्नी रानी कमलावती। संयोगवश एक दिन पुरोहित के दोनों पुत्रों को जातिस्मरण हुआ और उनका अन्तः. करण वैराग्य की भावना से भर गया। इसके बाद वे दोनों दीक्षार्थ अनुमति के लिए माता-पिता के पास जाकर इस प्रकार बोले... पुत्र- यह जीवन विघ्नबहुल तथा दुःखमय है। हमारी आयु अत्यल्प है। हमें घर में आनन्द नहीं मिलता है। अतः दीक्षार्थ अनुमति देवें।
पिता-वेदविद् ब्राह्मणों का कहना है कि पुत्र के बिना सद्गति 'नहीं मिलती है। अतः पहले वेद पढ़ो। ब्राह्मणों को भोजन कराओ। स्त्रियों के साथ भोग भोगो। पुत्र पैदा करो। पश्चात दीक्षा लेना।
पुत्र - वेदाध्ययन, ब्राह्मण-भोजन आदि रक्षा करने वाले नहीं हैं। इसके अलावा विषय भोग क्षणिक सुखरूप व अनर्थों की खान हैं।
१. उ० अध्ययन १४.
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