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________________ २२ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन का वर्णन है। प्रवचनमाता के अर्थ में समिति शब्द का भी प्रयोग होने से समितीय नाम भी उपयुक्त है।' इसकी गाथा-संख्या २७ है। २५. यज्ञीय-इसमें ४५ गाथाएँ हैं। जयघोष मूनि यज्ञ-मण्डप में ब्राह्मणों के साथ होनेवाले संवाद में सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप, यज्ञ की आध्यात्मिक व्याख्या और कर्म से जातिवाद की स्थापना करते हुए साधु के आचार का वर्णन करते हैं। इसकी १६ से २६ गाथाओं के अन्त में 'तं वयं बूम माहणं' पद पुनरावृत्त है। 'सभिक्षु' और 'पाप-श्रमणीय' अध्ययन की तरह इसका नाम 'सब्राह्मण' रखा जा सकता था परन्तु ब्राह्मणों के मुख्य कर्म यज्ञ को दृष्टि में रखकर तथा यज्ञविषयक आध्यात्मिक व्याख्या होने से इसका नाम 'यज्ञीय' रखा गया है। यद्यपि हरिकेशीय-अध्ययन में भी यज्ञविषयक घटना वर्णित है परन्तु वहाँ पर हरिकेशी को ही प्रधानता देने के कारण 'हरिकेशीय' नाम रखा गया है। २६. सामाचारो-इसमें ५३ गाथाएँ हैं। साध की सामान्य सम्यक् दिन और रात्रिचर्या का वर्णन होने से इसका नाम सामाचारी रखा गया है। २७. खलुङ कीय-खलुङ्कीय का अर्थ है-दुष्ट बैल। इसमें दुष्ट बैल के दृष्टान्त द्वारा अविनीत शिष्यों की क्रियाओं का वर्णन है अतः इसका नाम खलुङकीय रखा गया है। अविनीत शिष्यों का संपर्क होने पर साधु के कर्त्तव्यों को भी बतलाया गया है। गाथासंख्या १७ है। २८. मोक्षमार्गगति-इसमें ३६ गाथाएँ हैं। मोक्षमार्ग (रत्नत्रय) का वर्णन होने से इसका नाम मोक्षमार्गगति है। २६. सम्यक्त्व-पराक्रम-इसमें ज्ञान, श्रद्धा (दर्शन) और सदाचार के विभिन्न अंशों को लेकर ७३ प्रश्नोत्तरों में आध्यात्मिक १. अट्ठपवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य । -उ० २४.१. एयाओ अट्ठ समिईओ समायेण वियाहिया । -उ० २४.३. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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