SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [ ४२७ बहुत अधिक बतलाई गई है ।' चोर सेंध लगाकर चोरी करते थे । २ पकड़े जाने पर राजदण्ड मिलता था। फांसी का दण्ड मिलने के पूर्व अपराधी को कोई निश्चित वेश-भूषा पहनाई जाती थी जिससे लोग पहचान लेते थे कि अमुक ने चोरी की है। अतः समुद्रपाल वधस्थान को ले जाए जानेवाले वधयोग्य चिह्नों से विभूषित वध्य (चोर) को देख कर वैराग्य को प्राप्त हो जाता है । 3 कभी-कभी सच्चा अपराधी नहीं पकड़ा जाता था और निरपराध को दण्ड मिल जाता था। ६. राज्य का विस्तार करने तथा प्रभुत्व स्थापित करने के लिए नमस्कार न करनेवाले राजाओं को वश में करने का निरन्तर प्रयत्न कराना । ५ ७. लोकहितकारक बड़े-बड़े यज्ञ कराना तथा श्रमण-ब्राह्मणों को भोजन-पान करना । ८. स्व-पराक्रम से प्राप्त वस्तु का ही उपभोग करना । अतः इन्द्र राजानमि से कहता है कि आप गृहस्थाश्रम में ही रहें अन्य ( संन्यास) आश्रम की अभिलाषा न करें क्योंकि संन्यासाश्रम में याचनापूर्वक जीवन यापन करना पड़ता है। दूसरों से याचना करना क्षत्रियधर्म के विपरीत है । १. बहवे दसुया मिलेक्खुया । - उ० १०.१६. २. तेणे जहा संधिमुहे गहीए । - उ० ४.३. ३. वज्झमंडण सोभागं वज्झं पासइ वज्झगं । - उ० २१. ८. ४. असई तु मणुस्सेहि मिच्छादंडो पजुञ्जई । अकारिणोऽत्य बज्झति मुच्चई कारओ जणो । ५. देखिए - पृ० ४२४, पा० टि० ४. ६. देखिए - पृ० ४०६, पा० टि० ४. ७. देखिए - पृ० २३५, पा० टि० ३. Jain Education International - उ० ६.३०. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy