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४२६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन .. ३. शत्रुओं के आक्रमण से राज्य की सुरक्षा के लिए किला, .. गोपुर, ( किले का दरवाजा ), अट्टालिका, खाई, उत्सूलका ( किले. की खाई ), शतघ्नी ( बन्दूक ), धनुष, अर्गला, नगर, केतन, डोरी, बाण आदि बनवाना चाहिए।' इनके अतिरिक्त राजा को अन्य शस्त्रादि का भी निर्माण करवाना पड़ता था। ग्रन्थ में ऐसे अन्य कई शस्त्रों का उल्लेख मिलता है। जैसे : असि ( अतसी पुष्प के रंग की तलवार ), करपत्र (आरा), क्रकच (आरा विशेष), कुठार, कल्पनी. ( कतरनी ), गदा, त्रिशूल, क्षरिका, मूसल, मुग्दर ( जिसके दोनों किनारों पर त्रिशूल हो ), भल्ली (भाला), वासी (परशु ), अंकुश ( हाथी को वश में रखने का चाबुक ), तूर्य ( वादित्र ), लोहरथ, समिला ( रथ की धुरी ) आदि ।
४. वास्तुकला आदि के विकास के लिए विविध प्रकार से अलंकृत अनेक प्रासादों का निर्माण कराना। राज्य में वास्तुकला का विकास कराने में राजा ही समर्थ होता था क्योंकि ये प्रासाद बहुत व्यय साध्य होते थे। ऐसे कुछ प्रासादों का उल्लेख ग्रन्थ में भी मिलता है।
५. चोरी करनेवाले ( आमोष ), डाकू ( लोमहर ), रास्ते में लूटनेवाले लुटेरे ( ग्रन्थि-भेदक ) तथा ठगनेवाले ( तस्कर ) चोर विशेषों से नगर की रक्षा ।५ ग्रन्थ में दस्यु और म्लेच्छों की संख्या १. पागारं कारइत्ता गं गोपुरट्टालगाणि य । उस्सूलग सयग्घीओ तओ गच्छसि खत्तिया ।।
-उ० ६.१८. तथा देखिए-उ०६.२०-२२. २. उ० १६.३८, ५२, ५६-५७, ६०, ६२-६३, ६७-६८, ९३, १४.२१%
२०.४७; २१.५७; २२.१२, २७.४,७; ३४.१८. ३. पासाए कारइत्ताणं बद्धमाणगिहाणि य । वालम्ग पोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया ॥
-उ० ६.२४. ४. वही; उ० ६.७; ३५.४; १.२६; १६.३.४; १३.१३.
५. आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे । . नगरस्स खेम काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया ॥
-3.६.२८. .
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