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प्रास्ताविक : जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र [१६ प्रत्येक गाथा के अन्त में 'समयं गोयम मा पमायए' तथा अन्तिम गाथा में 'सिद्धि गई गए गोयमे' पद आया है।
११. बहुश्रुत-पूजा-इसमें ३२ गाथाएँ हैं जिनमें शास्त्रज्ञ व्यक्ति (बहुश्रुत) की प्रशंसा की गई है। प्रारम्भ में विनय अध्ययन की तरह विनीत और अविनीत शिष्यों के गुण-दोषादि का वर्णन किया गया है। विनीत को बहुश्रुत और अविनीत को अबहुश्रुत कहा है । ... १२. हरिकेशीय-इसमें ४७ गाथाएँ हैं जिनमें चाण्डाल जैसी नीच जाति में उत्पन्न हरिकेशिबल मनि के उदात्त चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त हरिकेशिबल और ब्राह्मणों के मध्य हुए संवाद में कर्मणा जातिवाद की स्थापना, तप का प्रकर्ष तथा अहिंसा-यज्ञ की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है।
१३. चित्तसंभतीय-इसमें चित्त और संभूत नाम के दो भाइयों के छः जन्मों की पूर्व-कथा का संकेत है। पुण्य-कर्म के निदान-बन्ध के कारण भोगासक्त संभूत के जीव (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) का पतन तथा संयमी चित्तमुनि का उत्थान बतलाकर जीवों को धर्माभिमुख होने तथा उसके फल की अभिलाषा (निदान) न करने का उपदेश दिया गया है। इसमें यह भी बतलाया गया है कि साधु-धर्म का पालन न कर सकने पर व्यक्ति को गृहस्थ-धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए। इसमें ३५ गाथाएं हैं। ::. १४. इषुकारीय-त्रिपन गाथाओं में इषुकार नगर के ६ जीवों - के अभिनिष्क्रमण का वैराग्योत्पादक वर्णन होने से इसका नाम . इषुकारीय रखा गया है। इसमें पति-पत्नी तथा पिता-पुत्र के बीच
होनेवाले संवाद दार्शनिक विषयों से सम्बन्धित होकर भी प्रभावोत्पादक हैं। . १५. सभिक्षु-इसकी सोलह गाथाओं में साधुओं के सामान्य गणों का वर्णन है। प्रत्येक गाथा के अन्त में 'स भिक्ख' पद आया है। अतः इस अध्ययन का नाम 'सभिक्षु' रखा गया है । दशवैकालिक के १०वें अध्ययन का भी नाम 'सभिक्षु' है ।
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