________________
१५]
उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
परिचय देकर जैन साधु के सामान्य आचार-विचार का वर्णन किया गया है । अतः इसका नाम क्षुल्लक-निर्ग्रन्थीय ( जैनसाधु ) रखा गया है । समवायांग में इसका नाम जो 'पुरुषविद्या' मिलता है उसका आधार इस अध्ययन की पहली गाथा ( जावंतविज्जापुरिसा० ) है ।
७. एलय ( उरभ्रीय ) - एलय और उरभ्र का अर्थ है - बकरा । प्रारम्भ में अतिथि के भोज के लिए स्वामी के द्वारा पाले जाने वाले
करे आदि के दृष्टान्त से संसारासक्त जीवों की दुर्दशा का चित्रण किया गया है । इसके बाद धर्माचरण से होने वाले शुभ फल का वर्णन किया गया है। बकरे के दृष्टान्त की प्रमुखता होने से इस अध्ययन का नाम एलय रखा गया हैं । इसमें ३० गाथाएँ हैं ।
८. कापिलीय - इसके प्ररूपक कपिलऋषि' हैं अतः इसका नाम कापिलीय रखा गया है । इसमें बीस गाथाओं द्वारा दुर्गति से बचने के लिए लोभत्याग का उपदेश दिया गया है ।
६. नमित्रव्रज्या - इसमें ६२ गाथाएँ हैं । इसमें प्रव्रज्या के लिए अभिनिष्क्रमण करनेवाले राजर्षि नमि का ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र के साथ आध्यात्मिक संवाद वर्णित है जिसमें प्रव्रज्या के समय उठने वाले सामान्य व्यक्ति के मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का सुन्दर चित्रण किया गया है । इस संवाद में ब्राह्मणवेषधारी इन्द्र मानसिक अन्तर्द्वन्द्वों का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रश्न करते हैं और प्रव्रज्याभिलाषी राजर्षि नमि उत्तर देते हुए उन मानसिक अन्तर्द्वन्द्वों का समाधान करते हैं । इस प्रकार का अन्तर्द्वन्द्व प्रायः सभी प्रव्रजितों के हृदय में उठना स्वाभाविक है । नमि की प्रव्रज्या का वर्णन होने से इसका नाम नमिप्रव्रज्या रखा गया है ।
१०. द्रुमपत्रक - इसमें सैंतीस गाथाएँ हैं । प्रारम्भ में वृक्ष के पीले पत्ते के दृष्टान्त द्वारा जीवन की क्षणभङ्गुरता का प्रतिपादन है अतः इस अध्ययन का नाम द्रुमपत्रक रखा गया है । इसमें गौतम को लक्ष्य करके साधु को अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया गया है।
१. इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं ।
- उ०८.२००
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org