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प्रास्ताविक : जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र [१७ २. परीषह-साधु के संयमी जीवन में आनेवाली प्रमुख २२ बाधाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक का दो-दो पद्यों में वर्णन किया गया है। प्रारम्भ में भूमिका-रूप कुछ गद्यखण्ड है और अन्त में उपसंहारात्मक पद्य ।
३. चतुरङ्गीय-बीस गाथाओं में मोक्ष के साधनभूत चार दुर्लभ अंगों का प्रतिपादन किया गया है। प्रसंगवश कर्मों की . विचित्रता तथा देवों के अमरत्व का खण्डन भी किया गया है।
४. असंस्कृत-तेरह गाथाओं में संसार की क्षणभङ्गुरता का प्रतिपादन करके भारण्डपक्षी की तरह अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया गया है। इसमें जीवन के असंस्कृतरूप (नश्वरता) का चित्रण होने से इसका नाम असंस्कृत पड़ा है। यह सबसे छोटा अध्ययन है ।
५. अकाममरण-इसमें बत्तीस गाथाएँ हैं जिनमें धार्मिक और अधार्मिक की मृत्यु का वर्णन किया गया है। धर्महीन सामान्य व्यक्तियों की मृत्यु को अकाममरण और धार्मिक व्यक्तियों की मृत्यु को सकाममरण, समाधिमरण, पण्डितमरण आदि नामों से कहा गया है। सामान्य व्यक्तियों के मरण के आधार पर इसका नाम अकाममरण रखा गया है।
६. क्षल्लक-निर्ग्रन्थीय-इसमें १७ गाथाओं के साथ अन्त में थोड़ा-सा गद्य-खण्ड है। विद्वान् कौन है ? मूर्ख कौन है ? इसका
३०. तव
तवोमग्गो ३७ तपस्या ३१. चरण
चरणविही २१ चारित्र ३२. पमायठाणं
पमायठाणाई १११ प्रमादस्थान ३३. कम्मप्पयडी कम्मपगडी २५ कर्म ३४. लेसा
लेसज्झयणं ६१ लेश्या ३५. अणगारमग्गे अणगारमग्गे २१ भिक्षु के गुण ३६. जीवाजीवविभत्ती जीवाजीववि- २६६ जीव-अजीव
भत्ती (उ.शा. २६७) का विवेचन
(उ. तु. २६८) -देखिए-उ. नि., गाथा १३-२६, २३६, ४२५, ४५८, ५०३; समवा.
३६वां समवाय ।
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