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________________ १६] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन १. विनयश्रुत - इसमें ४८ गाथाएँ (पद्य) हैं, जिनमें विनयधर्म का वर्णन किया गया है । प्रसंगवश विनीत एवं अविनीत शिष्यों के गुणदोषादि के वर्णन के साथ गुरु के कर्तव्यों का भी वर्णन किया गया है। गुरु-शिष्य-सम्बन्ध जानने के लिए यह अध्ययन बहुत ही उपयोगी है । दशवैकालिक का नौवाँ अध्ययन भी विनयविषयक है । १७. १८. १६. २०. २१. २२. २३. २४ २५. पावसमणिज्जं संजज्जं २७. २८. २६. मियचारिया के सिगोयमिज्जं . जन्नइज्जं २६. सामायारी खलु किज्जं मुख अप्पमाओ ( सम्मत्तपरक्कम ) पावस मणिज्जं २१ संजइज्जं नियंठिज्जं ( महानियंठ ) अणाहपव्वज्जा ६० समुद्धपालिज्जं समुद्दपालिज्जं २४ रहमी रहने मिज्जं ५४ पापवर्जन भोग व ऋद्धि ( उ. तु. ५३ ) का परित्याग अपरिकर्म समओ (पवणमाया) समितीओ Jain Education International मियचारिता ६६ (उ.शा. ६८ ) ( अपनी परि ( उ० तु. ६८) चर्या न करना) अनाथता विचित्र चर्या : ( आचरण ) ५१ -- आचरण का ( उ . शा. ४६ ) स्थिरीकरण गोयम के सिज्जं ८६ ( उ. तु. ४६ ) . २७ ― ― - जन्नतज्जं समायारी ५३ (उ. तु. ५२ ) खलु किज्जं १७ मोक्खमग्गगई ३६ अप्पमाओ ४५ (उ. तु. ४३ ) - धर्म (चतुर्या पंचयामरूप) का स्थिरीकरण समितियां ( गुप्तियों के साथ ) ब्राह्मण के गुण - For Personal & Private Use Only सामाचारी अशठता मोक्षमार्ग ७४ अप्रमाद www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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