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________________ प्रास्ताविक : जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र [१५ होता है क्योंकि दोनों प्रकार के नामों के साथ विषयगत संगति ठीक बैठ जाती है। इन ३६ अध्ययनों के नामादि इस प्रकार हैं . अध्ययन नाम अध्ययन नाम सूत्र-संख्या विषयवस्तु (उ.नि. के अनुसार) समवायांग के (आत्माराम (उ.नि. के अनुसार टीका के अनुसार) अनुसार) पद्य+गद्य १. विणयसुर्य विणयसुयं ४८ - विनय २. परीसह परीसह ४६ +३ प्राप्त कष्ट-सहन का विधान ३. चउरंगिज्ज चाउरंगिज्ज २० - चार दुर्लभ अंगों का प्रतिपादन ४. ' असंखयं असंखयं १३ - प्रमाद और अप्रमाद का कथन ५. अकाममरणं. अकाममरणिज्ज ३२ - मरणविभक्ति (अकाम और सकाममरण) . ६. नियंठ (खुड्डागनियंठ) पुरिसविज्जा १७ + १ विद्या और आचरण ७. ओरब्भं उरभिज्ज ३० - रसलोलुपता का त्याग ५ काविलिज्ज काविलिज्ज २० - अलोभ ९. णमिपज्जा नमिपव्वज्जा ६२ . -- निष्प्रकम्प भाव १०. दुमपत्तयं दुमपत्तयं ३७ -- अनुशासन ११. बहुसुयपुज्ज बहुसुयपूजा ३२ - बहुश्रत की पूजा १२. हरिएस हरिए सिज्ज ४७ - तप का ऐश्वर्य १३. चित्तसंभूइ चित्तसं भूयं ३५ ... निदान (भोगा भिलाषा) १४. उसुआरिज उसुकारिज्जं ५३ - अनिदान १५. सभिक्ख सभिक्खु गं १६ भिक्षु के गुण १६. समाहिठाणं समाहिठाणाई १७+ १० ब्रह्मचर्य की ____ (उ. तु. १२) गुप्तियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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