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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४२१ ये हैं : १. श्रेष्ठ वैद्य या चिकित्सक, २. श्रेष्ठ औषधिसेवन, ३. रोगी के द्वारा इलाज कराने की उत्कट अभिलाषा और ४. रोगी के सेवक । मन्त्र-शक्ति व शकुन में विश्वास :
प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में मन्त्र-तन्त्रशक्ति तथा शुभाशुभ फल बतलानेवाले शास्त्रों में विश्वास रहा है। अतः जैन साधु को इन सभी मन्त्र-तन्त्रशक्तियों तथा शुभाशुभ फल बतलानेवाले शास्त्रों का जीविका आदि के लिए प्रयोग न करने को कहा गया है । ' श्रेष्ठ साधु मन्त्रादि शक्तियोंवाले होते थे और उनकी इसी शक्ति के कारण जनता में साधु के प्रकोप का बड़ा भय रहता था। इसीलिए मुनि की शरण में आए हुए मृग को मारने के कारण राजा संजय भयभीतं हो जाता है और क्षमा मांगता है। इसी प्रकार हरिके शिबल मुनि का तिरस्कार करनेवाले ब्राह्मणों से भद्रा कुमारी कहती है कि यह मुनि घोर पराक्रमी तथा आशीविष लब्धिवाला (मनःशक्तिविशेष) है। यह क्रोधित होने पर तुम सबको तथा सम्पूर्णलोक को भी भस्म कर सकता है। इसकी निन्दा करने का अर्थ है-नखों से पर्वत को खोदना, दातों से लोहे को चबाना, पैरों से अग्नि को कुचलना। अतः यदि जीवन और धनादि की अभिलाषा करते हो तो तुम सब लोग इसकी शरण में जाकर क्षमा मांगो। इतना कहकर वह स्वयं भी मुनि से क्षमा मांगती है। 3 अरिष्टनेमी के विवाह के अवसर पर कौतूक-मंगल करने का अर्थ है शुभाशुभ शकुनों में विश्वास । इसी तरह रोगोपचार में भी मन्त्रादि शक्तियों का प्रयोग होता था ।५ ग्रन्थ में इस तरह की निम्नोक्त विद्याओं का उल्लेख मिलता है :६
१. देखिए-आहार, प्रकरण ४. २. विणएण वंदए पाए भगवं एत्थ मे खमे ।
-उ० १८.८. ३. देखिए-पृ० ३७३, पा० टि० ५; उ० १२.२३, २६-२८, ३०. ४. देखिए-पृ० ४११, पा० टि० ३. ५. देखिए-पृ० ४२०, पा० टि० ४. ६. उ० १५.७; २०.४६; २२.५; ३६.२६७; ८.१३.
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