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________________ ४१२] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन को याचना करने पर भी राजा उग्रसेन अपनी कन्या राजीमती देने के लिए तभी तैयार होते हैं जब अरिष्टनेमी के बड़े भाई केशव यह स्वीकार कर लेते हैं कि वे वर को लेकर बारात के साथ कन्या के घर आएँगे।' इससे यह भी सिद्ध होता है कि कुछ लोग राजकुमारों के लिए राजकन्याएँ भेंटस्वरूप में भी दे दिया करते थे। इसीलिए जब केशव अरिष्टनेमी के लिए राजीमती की याचना करते हैं तो राजीमती के पिता द्वारा यह कहना कि राजकुमार यहां.. आएँ और ले जाएँ यह सिद्ध करता है कि श्रेष्ठ कन्याएँ विवाहोत्सवपूर्वक ससम्मान दी जाती थीं तथा कुछ साधारण कन्याएँ संभवतः भेटरूप में भी भेज दी जाती थीं। ७. प्रायः बहु-विवाह भी होते थे। राजाओं एवं सम्पन्न कुलों में एक से अधिक पत्नियाँ हुआ करती थीं। जैसे:२ राजा वसुदेव की रोहणी और देवकी ये दो रानियाँ थीं। मृगापुत्र कई स्त्रियों के साथ देवसदृश भोग भोगा करता था। इसी प्रकार मृगापुत्र के पिता बलभद्र राजा की मृगा नाम की पटरानी थी। ८. इन विवाह-सम्बन्धों के अतिरिक्त कभी-कभी पति के मरने पर कुछ विधवाएं हृष्ट-पुष्ट पुरुष के साथ भी चली जाती थीं। सौन्दर्य-प्रसाधन : उस समय वस्त्र व आभूषणों के अतिरिक्त स्नान, मालाधारण, विलेपन आदि के द्वारा शरीर का शृङ्गार किया जाता था। कर्च व फनक (ब्रश या कंघी ) से बालों को संस्कृत किया जाता था तथा कुण्डल कानों में पहने जाते थे। इस तरह ये आभूषण आदि सौन्दर्य-प्रसाधन के काम आते थे। १. देखिए-पृ० ४१०, पा० टि० ३. २. तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा। -उ० २२.२. तथा देखिए-पृ० ४०३, पा० टि० १; परिशिष्ट २. ३. देखिए-पृ० १३३, पा० टि० २; पृ० ४०३, पा० टि० १. ४. देखिए-पृ० ४०४, पा० टि० १; पृ० ४११, पा० टि० ३. ५. वही; उ० ६.६०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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