SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४११ तब तक वहाँ रहकर उसके साथ भोग भोगता और फिर उसे लेकर स्वदेश लौट आता था।' ३. कभी-कभी माता-पिता कहीं से मनपसन्द सुन्दर कन्या लाकर पूत्र को दे देते थे।२ चंकि उस समय नारी को सम्पत्ति माना जाता रहा है अतः यह तभी संभव है जब कन्या खरीदकर या इसी प्रकार के किन्हीं अन्य उपायों के द्वारा लाई जाए। ४. जब वर दूल्हे के रूप में बारात लेकर कन्या के घर जाता था तो उसे नाना प्रकार के आभूषणों से अलंकृत किया जाता था तथा देश और कुलादि के अनुरूप कौतुकमंगल आदि कार्य भी किए जाते थे। बारात में ऊँच-नीच सब प्रकार के लोग जाते थे और उनके लिए भोजनादि का प्रबन्ध भी किया जाता था। ५. कभी-कभी देवता की प्रेरणा से भी राजकन्याएँ वर को सौंप दी जाती थीं।४ . ६. श्रेष्ठ गूण व रूप-सम्पन्न राजकन्याएँ राजकुमारों के द्वारा प्रार्थना करने पर भी बड़ी मुश्किल से प्राप्त होती थीं। यदि किसी को ऐसी राजकन्या राजा स्वयं दे दे तो वह बड़ा सौभाग्यशाली समझा जाता था। अतः भद्रा राजकुमारी उग्र तपस्वी हरिके शिबल मुनि को मारनेवाले ब्राह्मणों से कहती है- 'यह मुनि उग्र तपस्वी तथा ब्रह्मचारी है। स्वयं मेरे पिता कोशल नरेश के द्वारा देवता की प्रेरणा से मुझे इसके लिए दिए जाने पर भी इसने मुझे ग्रहण नहीं किया था। इसी प्रकार सर्वगुणसम्पन्न राजकुमार अरिष्टनेमी १. देखिए-पृ० ३६७, पा० टि० १. २. देखिए-पृ० ३६७, पा० टि० ७. ३. सव्वोसहीहिं हविओ कयकोऊयमंगलो । दिग्वजुयलपरिहिओ आभरणेहिं विभूसिओ ।। तुझं विवाहकज्जंमि भोयावेउं बहुं जणं ।। -उ० २२.६-१७. ४. देवाभिओगेण निओइएणं दिन्नासु रन्ना मणसा न झाया। - जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणि पिउणा सयं कोसलिए ण रन्ना ।। -उ० १२.२१-२२. ५. वही। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy