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________________ ४०६ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन यद्यपि आदर्श एवं स्वतन्त्र स्थिति भी थी परन्तु सामान्यतौर से वह पुरुषाधीन होकर पुरुष की सम्पत्ति मानी जाती थी । " रीति-रिवाज एवं प्रथाएँ ग्रन्थ में कुछ सांस्कृतिक तथा कुछ सामाजिक रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं का उल्लेख मिलता है जिनसे तत्कालीन सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में कुछ जानकारी उपलब्ध होती है । कुछ प्रमुख रीति-रिवाज एवं प्रथाएँ इस प्रकार हैं : यज्ञ : धार्मिक क्रियाओं में वैदिक यज्ञों का काफी प्रचलन था । ये यज्ञ दो प्रकार के होते थे : १. पशु - हिंसा वाले और २. पशु-हिंसा से रहित । इनमें से जो बड़े यज्ञ हुआ करते थे वे बहुत खर्चीले पड़ते थे । इन यज्ञों का सम्पादन वेदविद् ब्राह्मण किया करते थे परन्तु इनका खर्च यजमान ( यज्ञ कराने वाला ) वह्न किया करता था । यज्ञ की समाप्ति होने पर ब्राह्मण आदि को यज्ञान बाँटा जाता था । अतः नमि राजर्षि से इन्द्र कहता है कि विस्तृत यज्ञ करके तथा श्रमण-ब्राह्मणों को भोजन कराकर दीक्षा लेवें । ४ यमयज्ञ या भावयज्ञ - अज्ञानमूलक पशु - हिंसा प्रधान यज्ञों की ओर से लोगों की चित्तवृत्ति को मोड़ने के लिए ग्रन्थ में यज्ञ की भावात्मक ( आध्यात्मिक - अहिंसाप्रधान ) व्याख्या की गई है १. धणं पभूयं सह इत्थियाहि । -- उ० १४.१६. तथा देखिए - उ० १६.१७ आदि । २. वियरिज्जई खज्जइ भुज्जई अन्नं पभूयं भवयाणभेयं । ३. वही ; उ० १२.११; २५.७-८. ४. जइत्ता विउले जन्ने भीइत्ता समणमाह । दत्ता भोच्चा यजिट्ठाय तओ गच्छसि खत्तिया ॥ Jain Education International - उ० १२.१०. - उ० ९.३८. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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