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________________ प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [ ४०१ होते थे । सामान्यरूप से एक परिवार में माता-पिता, पुत्र एवं पुत्रवधुएँ रहा करती थीं। किसी-किसी परिवार में अन्य सम्बन्धीजन भी रहा करते थे । ' इन सभी परिवारों में मुख्यरूप से पुरुष शासक होता था और नारी शासित । परिवार के कुछ प्रमुख सदस्यों की स्थिति इस प्रकार थी : माता-पिता व पुत्र : 1 परिवार में माता-पिता का स्थान सर्वोपरि होता था । अतः दीक्षा लेते समय साधक को माता-पिता से आज्ञा लेनी आवश्यक होती थी । पिता सबका पालन-पोषण करता था । वृद्धावस्था के आने पर वह अपना भार पुत्र को सौंप देता था । अपने पुत्र की रक्षा के लिए वह सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता था । २ माता के लिए भी पुत्र अत्यन्त प्रिय होता था । अतः जब पुत्र दीक्षा लेने लगता था तो माता-पिता बहुत दुःखी होते थे । ऐसे समय कभी-कभी पुत्र के साथ माता-पिता भी दीक्षा ले लेते थे । उनकी दृष्टि में पुत्र से ही घर की शोभा थी । भृगु पुरोहित के जब दोनों पुत्र दीक्षा लेने लगते हैं तो प्रथम वह उन्हें सांसारिक भोगों के प्रति प्रलोभित करता है परन्तु जब वे उसके प्रलोभन में नहीं आते हैं तो भृगु पुरोहित कहता है - 'जिस प्रकार वृक्ष अपनी शाखाओं से शोभा को प्राप्त करता है और शाखाओं के कट जाने पर शोभाहीन स्थाणु मात्र रह जाता है उसी प्रकार माता-पिता अपने पुत्रों से सुशोभित होते हैं और पुत्रों के अभाव में निस्सहाय हो जाते हैं । इसी तरह . जैसे पक्ष ( पंख ) से विहीन पक्षी, युद्धस्थल में सेना ( भृत्य ) से विहीन राजा, पोत ( जहाज - जिस पर माल लदा है ) के जल में डूबने से धनरहित वैश्य निस्सहाय हो जाते हैं उसी प्रकार मैं भी पुत्र १. माया पिया हुसा माया भज्जा पुत्ता य ओरसा । २. पिया मे सव्वसारंपि दिज्जाहि मम कारणा । ३. माया वि मे Jain Education International - उ० ६.३० "पुत्तसोग दुहट्टिया । -उ० २०.२४, - ३० २०.२५. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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