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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
से विहीन निस्सहाय हूँ । अतः मेरा गृह में रहना उचित नहीं है। इसी प्रकार माता जब पुत्र व पति को दीक्षित होते देखती थी तो कभी-कभी वह स्वयं भी उनका अनुसरण करती थी क्योंकि स्त्री के लिए घर की शोभा पति और पुत्र से ही थी ।
भाई-बन्धु :
प्रायः भाई-बन्धुओं में चिरस्थायी प्रेम होता था । चित्त और संभूत नाम के दो भाई पाँच जन्मों तक साथ-साथ पैदा होने के बाद छठे भाव में अपने-अपने कर्मों के विपाक से पृथक्-पृथक् जन्म लेते हैं । उनमें से जब एक भाई को 'जाति- स्मरण' ( पूर्व जन्म का ज्ञान ) से अपने पूर्वभव का ज्ञान होता है तो वह अपने दूसरे भाई की खोज के लिए प्रयत्न करता है तथा उसे भी अपने ही समान उच्च वैभव से युक्त करना चाहता है । 3 जयघोष मुनि अपने भाई विजयघोष के कल्याण के लिए उसे सदुपदेश देकर सन्मार्ग में स्थित करता है । इषुकार देश के छः जीव भी इसी प्रकार पूर्व - जन्म से सम्बन्धित रहते हैं । "
नारी :
नारी अपने कई रूपों में हमारे सामने आती है । जैसे : माता, पत्नी, बहिन, वधू, पुत्री, पुत्रवधू, वेश्या आदि । ग्रन्थों में नारी की
१. पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो वासिद्धि भिक्खायरियाइ कालो ।
साहाहि रूक्खो लहइ समाहि छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥ पंखाविणो व्व जह पक्खी भिच्चाविहूणो व्व रणे नरिदो । विविन्नसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तोमि तहा अहंपि ॥ - उ० १४.२६-३०. २. पति पुत्ताय पई य मज्झं ते हूं कहं नाणुगमिस्समेक्का । - उ० १४.३६.
३. आसिमो भायरा दोवि अन्नमन्नवसाणुगा ।
तथा देखिए- परिशिष्ट २.
४. उ० अध्ययन २५.
५. उ० अध्ययन. १४.
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- उ० १३.३.
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