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प्रकरण ५ : विशेष साध्वाचार [ ३६५ पर्यन्त क्रमशः एक दिन उपवास (अनशन ) और दूसरे दिन नीरस अल्पाहार ( आय विल-आचाम्ल ) करे । तत्पश्चात् ६ मास पर्यन्त कोई कठिन तपश्चर्या न करके साधारण तप करे, फिर ६ मास पर्यन्त कठोर तपश्चर्या करके अन्त में नीरस अल्पाहार लेकर अनशन व्रत को तोड़ दे (पारणा करे)। इसके पश्चात अवशिष्ट १ वर्ष में कोटिसहित तप ( जिस अनशन तप का आदि और अन्त एकसा मिलता हो ) करता हुआ एक मास या १५ दिन मृत्यु के शेष रह जाने पर सब प्रकार के आहार का त्याग कर दे । इस विधि में आवश्यकतानुसार समय-सम्बन्धी परिवर्तन किया जा सकता है। यह सामान्य अपेक्षा से उत्कृष्ट सल्लेखना की पूर्ण विधि बतलाई गई है।
समाधिमरण की सफलता :
सल्लेखना की सफलता के लिए आवश्यक है कि सब प्रकार की अशुभ भावनाओं तथा निदान (फलाभिलाषा) आदि का त्याग करके जिनवचन में श्रद्धा की जाए। ग्रन्थ में पाँच प्रकार की अशुभ भावनाएँ बतलाई गई हैं जिनसे जीव सल्लेखना के फल को प्राप्त न करके दुर्गति को प्राप्त करता है।' इनके नामादि इस प्रकार हैं :२
१. कन्दर्प भावना ( कामचेष्टा-पुनःपुनः हंसना, मुख आदि को विकृत करके दूसरे को हंसाना आदि ), २. अभियोग भावना ( वशीकरण मन्त्रादि का प्रयोग-विषयसुख की अभिलाषा से वशीकरण मन्त्रादि का प्रयोग करना ), ३. किल्विषिकी भावना ( निन्दा करना-केवलज्ञानी, धर्माचार्य, संघ, साधु आदि की निन्दा करना ), ४. मोह भावना ( मूढ़ता-शस्त्रग्रहण, विषभक्षण, अग्निप्रवेश, जलप्रवेश, निषिद्ध वस्तुओं का सेवन आदि करना ) १. कंदप्पमाभिओगं च किदिवसियं मोहमासुरत्तं च । एयाउ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होति ।।
-उ० ३६.२५७. तथा देखिए-उ० ३६.२५८-२६८. २. वही।
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