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________________ ३६४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन रहती है। पादोपगमन में क्रिया सम्भव न होने से इसमें 'अविचार' व 'अपरिकर्म' नामक मरणकालिक अनशन तप किया जाता है। यही इन सल्लेखना के भेदों में अन्तर है। समाधिमरण की अवधि : यद्यपि सामान्यतौर से समाधिमरण की अधिकतम सीमा १२ वर्ष, न्यूनतम सीमा ६ मास तथा मध्यम सीमा १. वर्ष बतलाई गई है' परन्तु यह कथन उनकी अपेक्षा से कहा गया मालूम पड़ता है जो यह जानते हैं कि उनकी मृत्यु कब होगी ? अन्यथा इसकी न्यूनतम सीमा अन्तर्मुहूर्त तथा मध्यम सीमा उच्चतम एवं न्यूनतम सीमा के बीच कभी भी हो सकती है। समाधिमरण का इतना ही तात्पर्य है कि मृत्यु को निकट आया जानकर प्रसन्नतापूर्वक बिना किसी अभिलाषा के सब प्रकार के आहार का त्याग करके शरीर को चेतनाशून्य कर देना। समाधिमरण की विधि : समाधिमरण की बारह वर्ष प्रमाण उच्चतम सीमा को दृष्टि में रखकर उसकी विधि इस प्रकार बतलाई गई है :२ सर्वप्रथम साधक गुरु के समीप जाकर प्रथम चार वर्षों में घी, दूध आदि विकृत पदार्थों का त्याग करे। अगले चार वर्षों में नाना प्रकार की तपश्चर्या करे। इसके बाद दो वर्ष १. बारसेव उ वासाई संलेहुक्कोसिया भवे । संवच्छरं मज्झिमिया छम्मासा य जहन्निया ।। -उ० ३६.२५२. २. पढमे वासचउक्कम्मि विगई निज्जहणं करे । बिइए वासचउक्कम्मि विचित्तं तु तवं चरे ।। कोडीसहियमायाम कट संबच्छर मुणी । मासद्धमासिएणं तु आहारेणं तवं चरे ।। -उ० ३६.२५३-२५६. तथा देखिए-उ० ५.३०-३१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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