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१.२ ]
उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
सभी ग्रन्थों का सम्बन्ध अर्थतः महावीर के वचनों से है । दशवैकालिकसूत्र शय्यंभव की रचना होने तथा पिण्डनियुक्ति आदि भी बाद की रचनाएँ होने से उपर्युक्त कथन ठीक नहीं है । यह कथन कुछ अंशों में उत्तराध्ययन एवं आवश्यक की अपेक्षा से ठीक है। मालूम पड़ता है कि शार्पेन्टियर के इस कथन का आधार उत्तराध्ययन की अन्तिम गाथा रही है जिसमें बतलाया है कि भगवान् महावीर उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययनों का वर्णन करके परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये ।' इसी तरह 'समयं गोयम मा पमायए', 'सुयं मे आउस तेगं भगवया एवमक्खायं' आदि सूत्रस्थल रहे हैं । डा० गेरिनो " एवं प्रो० पटवर्धन का भी यही मत है ।
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२. प्रो० विन्टरनित्स ने मूल शब्द का अर्थ टीकाओं के आधारभूत 'मूलग्रन्थ के रूप में किया है । इसका तात्पर्य है कि इन १. इय पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वए ।
छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंवडे ।
- उ० ३६. २६६.
२. उ. १०.१-३६.
३. उ. १६.१ (गद्य) ।
४. उ. २६. १ ( प्रारम्भिक गद्य); २.१ ( गद्य), ४६ आदि ।
5. Guerinot (La Religion, Djaina, P. 79 ) translates Mūlasutra by "trates originaux."
- के. लि . जै., पृ. ४२.
6. "Thus the term Mula-sutra would mean "the original text" i. e. "the text containing the original words of Mahāvīra (as received directly from his mouth).
- दी दशवेकालिक सूत्र : ए स्टडी, पृ० १६. 7. Why these texts are called " root-sūtras” is not quite clear. Generally the word mula is used in the sense of "fundamental text" in contra-distinction to the commentary. Now as there are old and important commentaries in existence precisely in the case of these texts, they were probably termed "Mula-texts."
- हि. इ. लि., भाग २, पृ. ४६६, पाद-टिप्पणी १.
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