SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार [३२७ उस समय एक स्थान पर रहने को कहा गया है। इससे वह गमन करने में होनेवाली हिंसा के दोष का भागी नहीं होता है। ___ सामाचारी के प्रकरण में जो सामाचारी के १० अवयव बतलाए गए हैं उनके द्वारा साधु अपने आपको संयमित करता है तथा गुरु के अनुशासन में रहकर विवेकपूर्वक प्रवृत्ति करता है। इससे उसके महाव्रतों में कोई अतिचार नहीं होने पाता है। इसी प्रकरण में साधु की सामान्यरूप से जो दिनचर्या एवं रात्रिचर्या वणित की गई है उसमें 'आहार' और 'निद्रा' के लिए बहुत ही स्वल्प तथा ध्यान और स्वाध्याय के लिए सर्वाधिक समय नियत किया गया है। दिन और रात्रि के २४ घंटों में से १२ घंटे स्वाध्याय के लिए, ६ घंटे ध्यान के लिए, ३ घंटे भिक्षान्न-प्राप्ति के लिए तथा ३ घंटे शयन करने के लिए नियत हैं। इससे स्पष्ट है कि साधु अपना अधिक से अधिक समय अध्ययन और आत्मचिन्तनरूप ध्यान में लगाए। स्वाध्याय और ध्यान करने से मन, वचन एवं काय एकाग्र होकर तप की ओर अग्रसर होंगे और तब हिंसादि सावद्य प्रवृत्तियाँ रुक जाएँगी। . साधु के जो छः नित्यकर्म (आवश्यक ) बतलाए गए हैं उनके द्वारा भी साध अपने आपको संयमित करता है। गुरु आदि की स्तुति करने तथा आत्मगत दोषों की आलोचना करने से अज्ञान में हुए क्षुद्र हिंसादि दोषों की विशुद्धि हो जाती है। वस्त्र, पात्र आदि का उपयोग करते समय उन्हें अच्छी तरह देखने (प्रतिलेखना व प्रमार्जना ) से उनमें वर्तमान क्षद्र जन्तुओं की हिंसा नहीं होती है। इसके अतिरिक्त साधु नित्यकर्मों से हमेशा सतर्क रहने की प्रेरणा प्राप्त करता है। ... इसी प्रकार के शों को हाथों से उखाड़ने, श्रेष्ठ वस्त्रादि को न पहिनने आदि नियमोपनियमों से भी अहिंसादि व्रतों की रक्षा का ध्यान रखा गया है। इस तरह साधु का सम्पूर्ण आचार अहिंसा और अपरिग्रहादिरूप पाँच नैतिक महाव्रतों के रूप में चित्रित किया गया है। पातञ्जल योगदर्शन में भी अहिंसादि इन पाँच नैतिक व्रतों का महाव्रत के रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy