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३०६ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन ___ इस तरह ग्रन्थ में कुछ प्रत्याख्यानों के प्रकार और उनके फल बतलाए गए हैं। इसी तरह प्रत्याख्यान आवश्यक के अन्य प्रकार समझ लेने चाहिए।'
उपर्यक्त सामायिक आदि छः आवश्यकों के ही नाम अनुयोगद्वार में प्रकारान्तर से मिलते हैं जिनसे इनके स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है। उनके क्रमशः नाम ये हैं :२. १. सावद्ययोगविरति (सामायिक), २. उत्कीर्तन ( चतुर्विंशतिस्तव ), ३. गुणवत्प्रतिपत्ति ( वन्दन ), ४. स्खलितनिन्दना ( प्रतिक्रमण ), ५. व्रणचिकित्सा (कायोत्सर्ग) और ६ गुणधारण (प्रत्याख्यान )। 'आवश्यक' नामक एक सूत्रग्रन्थ भी है जिसमें इन छ: आवश्यकों का ही विशेष वर्णन किया गया है।
इन छः आवश्यकों के अतिरिक्त एक आवश्यक क्रिया और है जिसका नाम है वस्त्रादिक की प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना। यह प्रतिक्रमण आवश्यक में ही गतार्थ है। इन छ: नित्यकर्मों की आवश्यक संज्ञा रूढ़ है, अन्यथा ग्रन्थ में साधु के अन्य भी नित्यकर्म बतलाए गए हैं जिनका स्पष्टीकरण आगे बतलाई जानेवाली साधु की दिन एवं रात्रिचर्या से हो जाएगा। वस्तुतः ये छः आवश्यक या नित्यकर्म साधु के सामान्य नित्यकर्म हैं और अध्ययन, मनन आदि विशेष कार्य हैं।
सामाचारी
प्रतिदिन साधु को जिस प्रकार का आचरण करना पड़ता है उसे 'सामाचारी' कहा गया है। सामाचारी शब्द का सामान्य अर्थ है-सम्यक्चर्या या आचरण । ग्रन्थ में सामाचारी के दस १. विशेष के लिए देखिए-भगवतीसूत्र ७.२. २. सावज्जजोगविरई उक्कित्तण गुणवओय पडिवत्ती । खलिचस्स निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥
-अनुयोगद्वार, पृ० ३०.
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