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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार
अङ्ग बतलाए गए हैं जिनका पालन करने से साधु संसाररूपी समुद्र से पार उतर जाता है।' सामाचारी के दस अङ्ग :
संसाररूपी समुद्र से पार उतारनेवाली सामाचारी के दस अङ्ग इस प्रकार हैं :२
१. आवश्यकी- निवास-स्थान ( उपाश्रय ) से बाहर जाते समय आवश्यक कार्य से बाहर जा रहा हूँ एतदर्थ 'आवस्सही' ऐसा कहना।
२. नषेधिकी- बाहर से उपाश्रय के अन्दर आते समय 'निसिही' ऐसा कहना। ___३. आपृच्छना - गुरु आदि से अपना कार्य करने के लिए पूछना या आज्ञा लेना।
४. प्रतिपृच्छना-दूसरे के कार्य के लिए गुरु से पूछना।
५. छन्दना - भिक्षा के द्वारा प्राप्त द्रव्य सर्मियों को देने के लिए आमन्त्रित करना।
६. इच्छाकार-गुरु आदि की इच्छा को जानकर तदनुकूल कार्य करना।
७. मिथ्याकार-कोई अपराध हो जाने पर अपनी निन्दा करना ।
८. तथाकार - गुरु के वचनों को सुनकर तहत्ति' (जैसी आपकी आज्ञा ) ऐसा कहकर आदेश को स्वीकार करना।
६. अभ्युत्थान-सेवायोग्य गुरु आदि की सेवा-शुश्रूषा करना ।
१०. उपसम्पदा-ज्ञानादि की प्राप्ति के लिये किसी अन्य गुरु की शरण में जाना। १. सामायारि पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणि । जे चरित्ताण निग्गंथा तिण्णा संसारसागरं ॥
-उ० २६.१. तथा देखिए-उ० २६.५३. २. पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया ।
एवं दुपंचसंजुत्ता सामायारी पवेइया ॥
-उ० २६.२.७.
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