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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार
[ २६१ प्रकार के शुभाशुभ अर्थों में होनेवाली शुभाशुभ प्रवृत्ति को रोकना गुप्ति है। समितियाँ-प्रवृत्ति में सावधानी :
गमन आदि क्रियाओं के करते समय सावधानीपूर्वक प्रवृत्ति करना समिति है । अर्थात् साधु जो भी क्रियाएँ करे उनमें प्रमाद न करते हुए सावधानी रखे ताकि जीवादि की हिंसा न हो । साधु को प्रतिदिन सामान्यरूप से जिन गमनादि क्रियाओं को करना पड़ता है उन्हें पांच भागों में विभक्त करके समिति के भी पाँच भेद गिनाए गए हैं। इनके नामादि इस प्रकार हैं : ' १. गमन क्रिया में सावधानी (ईर्यासमिति), २. वचन बोलने में सावधानी (भाषासमिति), ३. आहारादि साधन-सामग्री के अन्वेषण, ग्रहण एवं उपभोग में सावधानी (एषणासमिति ), ४. वस्त्रादि के उठाने व रखने आदि में सावधानी (आदाननिक्षेपसमिति) और ५. मलमूत्रादि का त्याग करते समय सावधानी (उच्चारसमिति)। ... १. ईर्यासमिति-वर्षाकाल को छोड़कर शेष काल में साधु के लिए अपने शिष्य-परिवार के साथ या एकाकी ( पक्षी की तरह निरपेक्षी होकर ) ग्रामानुग्राम विचरण करने का विधान है। अतः मार्ग में गमन करते समय जिस प्रकार की सावधानी आवश्यक होती है उसे ईर्यासमिति कहते हैं। इस समिति की परिशुद्धि के लिए चार बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है: १. आलम्बन, २. समय, ३. मार्ग और ४. उपयोग ( सावधानी ) । अतः ग्रन्थ १. देखिए-पृ० २०५, पा० टि० ३; उ० १२. २; १९. ८६; २०.४०;
२४.१,२६ ; ३०.३. २. विगिच कम्मुणो हेउं कालकंखी परिव्वए ।
--उ० ६.१५. चिच्चा गिह एगचरे स भिक्खू ।
-उ० १५.१६. मग्गगामी महामुणी।
-उ० २५.२. तथा देखिए-उ० १०.३६; २२.३३; २३.३,७ आदि ।
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