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प्रकरण ४: सामान्य साध्वाचार [२७३ ६. शरीर की विभूषा का त्याग-शरीर का शृङ्गार करने से कामेच्छाएँ जाग्रत होती हैं । अतः ब्रह्मचारी साधु को मण्डन, स्नान आदि से शरीर को अलंकृत नहीं करना चाहिए।'
१०. शब्दादि पाँचों इन्द्रियसम्बन्धी विषयों के भोगोपभोग का त्याग-मधुर शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये पाँचों विषय कामवासना को जाग्रत करने के कारण 'कामगुण' कहे जाते हैं । अतः इन सभी प्रकार के कामगुणों का ब्रह्मचारी के लिए त्याग आवश्यक है।
इस तरह ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए जितने भी ब्रह्मचर्य से . डिगानेवाले शंकास्थल हैं उन सबका त्याग आवश्यक है क्योंकि ये बहुत ही स्वल्पकाल में तालपुट विष (अति उग्र विष) की तरह ब्रह्मचारी के लिए घातक होते हैं। 3 ग्रन्थ में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए जो 'स्त्री' शब्द का सन्निवेश किया गया है वह कामसंतुष्टि का उपलक्षण है। अतः जिसे जिस किसी से भी कामसंतुष्टि हो उसे. उसीका त्याग करना चाहिए। इन समाधिस्थानों का ब्रह्मचर्य की रक्षा में विशेष महत्त्व होने के कारण इन्हें ही ब्रह्मचर्य की गुप्तियाँ कहा गया है। दसवां समाधिस्थान अन्य : समाधिस्थानों का संग्रह
१. विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमंडणं । बंभचेररओ भिक्ख सिंगारत्थं न धारए ।
-उ० १६.६. तथा देखिए-उ० १६.६ (गद्य), १३. २. सद्दे रूवे य गन्धे य रसे फासे तहेव य । - पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए॥
तथा देखिए-उ० १६.१० (गद्य), १३. ३. नरस्सऽत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ।
-उ० १६.१३. संकट्ठाणाणि सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं ।
-उ० १६.१४. ४. उ० ३१.१०.
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