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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार [ २७१ आसक्ति न हो इसीलिए ग्रन्थ में स्त्रियों को 'राक्षसी' एवं 'पङ्कभूत' (कीचड़) तक कहा है-'राक्षसी स्त्रियों में साधु को प्रलोभित नहीं होना चाहिए क्योंकि ये नाना प्रकार के चित्तवाली हैं तथा वक्षस्थल में मांस-पिण्ड ( कुच ) को धारण करती हैं। ये पहले पुरुष को प्रलोभित करती हैं, पश्चात उनसे दास की तरह व्यवहार करती हैं। अतः इनको कीचड़रूप जानकर साधु अपने आपका हनन न करे तथा आत्मगवेषी बनकर संयम का पालन करे।
५. स्त्रियों के विविध प्रकार के शब्दों के श्रवण का त्यागब्रह्मचारी साध को श्रोत्रेन्द्रियग्राह्य स्त्रियों के कजित (सुरतकाल में होनेवाले कपोतादि पक्षियों की तरह अव्यक्त शब्द), रुदित (रतिकलह), गीत (गानयुक्त शब्द), हसित (हास्ययुक्त शब्द), स्तनित (गम्भीर शब्द या सुरतकाल में होनेवाला सीत्कार), क्रन्दित (करुण रोदन), विलाप (पतिवियोगजन्य पीड़ा) आदि कामरागवर्धक वचनों को नहीं सुनना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के कामवर्धक वचनों का श्रवण करने से मन चलायमान हो जाता है।
६. पूर्वानुभूत कामक्रीड़ा के स्मरण का त्याग-ब्रह्मचारी साधु को ब्रह्मचर्यव्रत लेने के पूर्व अनुभव की गई कामक्रीड़ा का स्मरण नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से मन विचलित हो सकता है। .. १. पंकभूयाओ इथिओ।
-उ० २.१७. नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा गंडबच्छासु णेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लंति जहा व दासेहिं ।।
-उ० ८.१८. २. कुइयं रुइवं गीयं हसियं थणियकं दियं । बंभचेररओ थीणं सोयगिज्झं विवज्जए॥
-उ० १६.५. तथा देखिए-उ० १६.५ (गद्य), १२. ३. हासं किड्डं रई दप्पं सहसाऽवत्तासियाणि य ।
बंभचेररओ थीणं नाणुचिते कयाइवि । . तथा देखिए-उ० १६.६ (गद्य), १२; ३२.१४.
-उ० १६.६.
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