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२६८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ब्रह्मचर्य महाव्रत है।' ग्रन्थ में इसके १८ भेदों का संकेत मिलता है।२ औदारिकशरीर (मनुष्य व तिर्यञ्च-सम्बन्धी शरीर) और वैक्रियकशरीर ( देवसम्बन्धी शरीर ) से मैथन सेवन संभव होने से टीकाकारों ने इन दोनों प्रकार के शरीरों के साथ मैथुन सेवन का कृत-कारित-अनुमोदना तथा मन-वचन-काय से त्याग करनेरूप ब्रह्मचर्य के १८ भेद गिनाए हैं। ये जो ब्रह्मचर्य के १८ भेद गिनाए गए हैं वे सामान्य अपेक्षा से हैं अन्यथा प्रति व्यक्ति के शरीर-भेद से इसके अनेक भेद संभव हैं। इस ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए निम्नोक्त दस प्रकार के समाधिस्थानों का अनुपालन आवश्यक है :
समाधिस्थान-ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए जिन दस विशेष बातों का त्याग आवश्यक बतलाया गया है उन्हें ग्रन्थ में 'समाधिस्थान' के नाम से कहा गया है। चित्त को एकाग्र करने में इनका विशेष महत्त्व होने के कारण इन्हें समाधिस्थान कहा गया है। समाधिस्थान के दस प्रकार निम्नोक्त हैं :
१. स्त्री आदि से संकीर्ण स्थान के सेवन का त्याग-स्त्री, पशु आदि का जहां पर आवागमन संभव है ऐसे मन्दिर, सार्वजनिक स्थान, दो घरों की सन्धियाँ, राजमार्ग आदि स्थानों में साधु अकेला
१. दिव्वमाणुस्सतेरिच्छं जो न सेवइ मेहुणं । ' मणसा कायवक्केणं तं वयं बूम माहणं ।।
-उ० २५.२६. विरई अबंभचेरस्स कामभोगरसन्नुणा । उग्गं महव्वयं बंभ धारेयव्वं सुदुक्करं ॥
- उ० १६.२६. २. उ० ३१. १४. ३. वही, आ० टी०, पृ० १३६६. ४. इमे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे
भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा।।
-उ० १६. १ (गद्य).
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