________________
प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार
[ २५५ उपकरण भी अपने पास में रखते थे। कुछ साधु वस्त्र से रहित भी होते थे । केशिगौतम-संवाद में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के शिष्यों और भगवान् महावीर की परम्परा के शिष्यों में 'सान्तरोत्तर' ( वस्त्रसहित ) और 'अचेल' ( वस्त्ररहित ) के १. सान्तरोत्तर-केशि ने भगवान पार्श्वनाथ के धर्म को जो संतरुत्तर
(सान्तरोत्तर) बतलाया है वह विचारणीय है क्योंकि इस शब्द के . अर्थ में विद्वानों में विचार-भेद पाया जाता है। जैसे : क. सान्तराणि-वर्धमानस्वामियत्यपेक्षया मानवर्णविशेषतः सविशेषाणि,
उत्तराणि-महामूल्यतया प्रधानानि प्रक्रमात् वस्त्राणि यस्मिन्नसौ सान्तरोत्तरो धर्मः पार्श्वेन देशितः ।
-उ० (२३. १३) ने० टी०, पृ० २६५. ख. अपगते शीते वस्त्राणि त्याज्यानि अथवा... शीतपरीक्षार्थ च सान्त
रोत्तरो भवेत् । सान्तरमुत्तरं-प्रावरणीयं यस्य स तथा क्वचित् प्रावृणोति क्वचित् पार्श्ववति विभर्ति शीताशङ्कया नाद्यापि परित्यजति, अथवाऽवमचेल एक-कल्प-परित्यागात् द्विकल्पधारीत्यर्थः, अथवा शनैः शनैः शीतेऽपगच्छति सति द्वितीयकल्पमपि परित्यजेत् तत एक. शाटकः संवृत्तः, अथवाऽऽत्यन्तिके शीताभावे तदपि परित्यजेदतोऽचेलो भवति असौ मुखवस्त्रिकारजोहरणमात्रोपधिः ।
-आचाराङ्गसूत्र २०६ (शीलांकत्ति, पृ० २५१). 7. The Law taught by Vardhamāna forbids clothes, but
that of the great sage Pārsva allows an under and upper garment.
-से० बु० ई०, भाग-४५, पृ० १२३. भगवान महावीर के धर्म को 'अचेल' (वस्त्ररहित) कहने से प्रतीत होता है कि 'सान्तरोत्तर' का अर्थ 'सचेल' (वस्त्र-सहित) होना चाहिए परन्तु उपर्युक्त उद्धरणों से तथा 'सचेल' के अर्थ में 'अचेल' की तरह 'सचेल' शब्द का प्रयोग न करके 'सान्तरोत्तर' शब्द का प्रयोग करने से प्रतीत होता है कि 'सान्तरोत्तर' का अर्थ उत्तरीय-वस्त्र और अधोवस्त्र इन दो वस्त्रों के धारण करने से है। आचाराङ्गसूत्र-वृत्ति (अथवाऽवमचेल एक-कल्प-परित्यागात् द्विकल्पधारीत्यर्थः) से भी इसी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org