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________________ २५४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन अतः दीक्षा ले लेने पर वह अपने माता-पिता आदि सभी . कुटुम्बीजनों के द्वारा भी पूज्य हो जाता है।' वस्त्राभूषण का त्याग एवं केशलौंच : दीक्षित होने वाले साधक को सर्वप्रथम अपने सभी वस्त्राभूषणों का त्याग करना पड़ता है। तदनन्तर अपने सिर एवं दाढ़ी के बालों को दोनों मुठियों से स्वयं या दूसरे की सहायता से उखाड़ना पड़ता है जिसे केशलौंच कहा जाता है । इस तरह साधक को दीक्षा लेने के पूर्व सर्वप्रथम अपने कुटुम्बीजनों की आज्ञा लेनी पड़ती है। इसके बाद वह कुटम्ब एवं परिवार के स्नेहीजनों का मोह छोड़कर तथा संसार के विषय-भोगों का परित्याग करके दीक्षागुरु के समीप जाता है। वहाँ पहुँचकर वह अपने सभी वस्त्र एवं आभूषण आदि को त्यागकर दोनों हाथों से अपने बालों को भी उखाडकर अलग कर देता है। इसके बाद वह साध के नियमों आदि को ग्रहण करता है। यह दीक्षा संसार के कष्टमय जीवन से पलायन नहीं है तथा इसे कोई भी ग्रहण कर सकता है। बाह्य उपकरण प्राध __ग्रन्थ में साध के बाह्यवेष व उपकरण आदि के विषय में जो संकेत मिलते हैं उनसे पता चलता है कि साधु गृहस्थ के द्वारा प्राप्त साधारण वस्त्रों को पहिनते थे तथा पात्र आदि कुछ अन्य १. एवं ते रामकेसवा दसारा य बहुजणा। अरिट्टनेमि वंदित्ता अइगया बारगाउरि ।। -उ० २२. २७. २. आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामई । -उ० २२. २०. सयमेव लुचई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ। -उ० २२. २४. तथा देखिए-उ० २२. ३०-३१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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