________________
२१६ ]
उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
१
८.
आज्ञा का गुप्त या प्रकटरूप से कभी भी उल्लंघन न करके उनके कथनानुसार उसी प्रकार प्रवृत्ति करना जिस प्रकार एक सुशिक्षित घोड़ा चाबुक के इशारे से प्रवृत्ति करता है, ' ६. गुरु के द्वारा प्रेरित किए बिना ही प्रेरित किए हुए की तरह गुरु के भावों को जानकर सदा सुन्दर कार्य करनार, ७. गुरु की आज्ञा के बिना कुछ भी कार्य न करना, गुरु के वचनों को अनसुना न करके बुलाए जाने पर उत्तर देना (मौन न रहना ), ६. गुरु. उपदेश को एकाग्रचित्त से सुनकर अर्थयुक्त बातों को ग्रहण करते हुए निरर्थक बातों को छोड़ देना ५, १०. किसी प्रकार का सन्देह होने पर विनम्रतापूर्वक गुरु से स्पष्ट कहना ६, ११. गुरु की सेवा करते हुए गुरु पर आए हुए विघ्नों का निवारण करना ७, १२. पाँच प्रकार के विनय, पाँच प्रकार के स्वाध्याय और दस प्रकार की
४
के
१. पडिणीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा ।
आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइवि ||
मा गलियसेव कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइण्णे पावगं परिवज्जए ||
तथा देखिए - उ० २६.१०. २. वित्ते अचोइए निच्चं खिप्पं हवइ सुचोइए । जहोवइट्ठ सुकयं किच्चाई कुब्वई सया ||
- उ०.१.१७.
- उ० १.१२.
३. पुच्छिज्ज पंजलिउडो कि कायव्वं मए इह ।
-उ० १.४४.
६. उ० २३.१३-१४; २५.१३. ७. उ० १२.१६,२४.
४. आपरिएहि वाहितो तुसिणीओ न कयाइवि ।
Jain Education International
- उ० २६.६.
तथा देखिए - उ० १.२१.
५. अट्टजुत्ताणि सिक्खिज्जा निरद्वाणि उ वज्जए ।
उ० १.२०.
तथा देखिए - उ० २०.१७,३८; ३०.१,४.
- उ० १.८.
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org