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________________ १२) उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन इस तरह ज्ञान और चारित्र दोनों साथ-साथ आगे बढ़ते हैं। जब साधक को सच्चा व पूर्ण ज्ञान हो जाता है तो वह संसार के बन्धन से छुटकारा पा जाता है क्योंकि जब सच्चा एवं पूर्ण ज्ञान हो जाता है तो वह कभी भी गलत आचरण नहीं कर सकता है। इसीलिए भृगुपुरोहित के दोनों पुत्र अपने पिता से कहते हैं'जिस प्रकार हम लोगों ने धर्म को न जानते हए अज्ञानवश ( मोहवश ) पहले पाप-कर्म किए थे उस प्रकार अब हम आपके द्वारा रोके जाने पर और रक्षा किए जाने पर पुनः उन कर्मों को नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ में पूर्णज्ञानी को जीवन्मुक्त ( केवली ) कहा गया है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि केवल ज्ञानमात्र से मुक्ति हो जाती है क्योंकि पूर्वबद्ध कर्मों का फल अवश्य भोक्तव्य होने के कारण पूर्ण-मूक्ति के लिए पूर्णज्ञान के बावजूद भी सदाचार की आवश्यकता है। यदि पूर्णज्ञान मात्र से ही मुक्ति मान ली जाती तो जिनेन्द्र देवों का उपदेश प्रामाणिक नहीं होता क्योंकि पूर्णज्ञान हो जाने पर वे संसार में न रहेंगे और पूर्णज्ञान के पूर्व दिया गया उनका उपदेश प्रामाणिक न होगा। इस तरह ज्ञान के बिना चारित्र और चारित्र के बिना ज्ञान दोनों पङ्ग हैं। ग्रन्थ में ज्ञान की अपेक्षा कहीं-कहीं आचार को प्रधानता देने का मुख्य प्रयोजन था कि उस समय लोग मात्र वेद-ज्ञान को मुक्ति का साधन मानकर अपने आचार से पतित हो रहे थे। शब्दज्ञान मात्र से चारित्र शुद्ध नहीं होता है । अतः उस ज्ञान में दृढ़ विश्वास भी आवश्यक है। इसीलिए ज्ञान और आचार के पूर्व श्रद्धापरक सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन आवश्यक माना गया है क्योंकि किसी भी जीव का ज्ञान कितना ही उच्च-कोटि का क्यों न हो वह तब तक सम्यक नहीं कहला सकता है जब तक उसे सम्यग्दर्शन न हो। १. जहा वयं धम्ममजाण माणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुब्भमाणा परिरक्खियंता तं नेव भुज्जो वि समायरामो॥ -उ०१४.२०. २. देखिए-प्रकरण ६. ३.. जीवादीसदहणं सम्मत्तं रूव मप्पणो तं तु । दुरभिणिवेसविमुक्कं गाणं सम्मं खु होदि सदि जम्हि ॥ --द्रव्यसंग्रह, गाथा ४१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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