________________
१६० ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
६ प्रमादस्थानीय अध्ययन के प्रारम्भ में सम्पूर्ण दुःखों से मुक्ति का एकान्त हितकारी उपाय बतलाते हुए कहा है- 'सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाश से, अज्ञान और मोह के त्याग से, राग और द्वेष के क्षय से एकान्त सुखरूप मोक्ष प्राप्त होता है।'' इसी तरह इसके आगे भी इसी तथ्य का समर्थन करते हुए लिखा है- 'श्रेष्ठ और वृद्ध लोगों (स्थविर-मुनियों) की सेवा (सदाचार), मूर्ख पुरुषों की संगति का त्याग (सम्यग्दर्शन), एकान्त में निवास, स्वाध्याय, सूत्रार्थ-चिन्तन (सम्यक्ज्ञान) और धैर्य यह मोक्ष का मार्ग है ।'२ ___ इस तरह विश्वास (सम्यग्दर्शन - सम्यक्त्व), ज्ञान (सम्यग्ज्ञान)
और सदाचार (सम्यक्चारित्र) रूप रत्नत्रय ही मुक्ति का प्रधान साधन है। यहाँ इतना विशेष है कि ये तीनों मिलकरके हो मुक्ति के साधन हैं, पृथक-पृथक् तीन साधन नहीं हैं। अतः ये गीता के भक्तियोग ( विश्वास-सम्यक्त्व ), ज्ञानयोग ( सम्यग्ज्ञान )
और कर्मयोग ( सदाचार ) की तरह पृथक-पृथक तीन मार्ग नहीं हैं। तत्त्वार्थसूत्रकार ने इसीलिए रत्नत्रय को मोक्ष का मार्ग बतलाते हुए 'मार्ग' शब्द में एकवचन का प्रयोग किया है। __ ज्ञानमात्र से मुक्ति संभव नहीं-'ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है'५ इस वैदिक-संस्कृति में विश्वास करने वाले और ज्ञानमात्र १. अच्चंतकालस्स समूलगस्स सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो ।
तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता सुणेह एगग्गहियं हियत्थं ॥ नाणस्स सव्वस्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवज्जपाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥
-उ० ३२.१.२. २. उ० ३२.३. ३. भा० द० ब०, पृ० ८१. ४. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।
- त० सू० १.१. ५. तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति । नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥
- श्वेताश्वतरोपनिषद् ६.१५. तथा देखिए-वही ३.८.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org